रूसी साम्यवाद १६५ करने की इच्छुक हो, उसे जान-घूम कर घोटाली करने वालों की मनोवृत्ति का मुकायिला करने की तैयारी रखना चाहिए। पंजीवादी व्यवस्था में यह देखने में पाता है कि कारीगर लोग अपने काम में कुछ-न-कुछ दोष रहने देते हैं जिससे थोड़े असे में उनकी फिर जल्लत पड़ती है और उनको पैसा पाने का मौका मिल जाता है । किन्तु रूस में उन लोगों ने, जो बोल्शेविकों से घृणा करते थे, जान-बूझ कर मशीनों को बिगाड दिया, हिसायों में गोल-माल किया और धागामी फल के बीजों तक को वैकार कर दिया । इसकी वजह थी। जो लोग क्रान्ति के पहले धाराम से जिन्दगी बसर कर रहे थे और जो इस बात से अपरिचित थे कि उनके भाराम के साथ गरीबों के दुःखों का अनिवार्य सम्बन्ध है, जब उनके घरों पर विद्रोही श्रमजीवियों ने अधिकार जमा लिया, उनकी चाय के साधन जस्त कर लिये, उनका पूर्व श्रादर-सम्मान जाता रहा, उनका वोट देने का अधिकार छीन लिया गया, उनके बच्चों की शिक्षा- दीक्षा की उपेक्षा की गई तो उनको बुरा क्योंकर न लगता ? उनमें बदला लेने की भावना जाग्रत हुई और उन्होंने शरारत में ही सन्तोष माना । इन लोगों का दो ही तरह से इलाज किया जा सकता था । या तो उन्हें 'का' (पुलिस) के सिपुर्द किया जाता जो उन पर मुकदमा चलाती और गोली से उड़ा देती या उनके लिए फिर पाराम की जिन्दगी सुलभ की जाती । यह श्रासान न था, क्योंकि जबतक लोग उन्हें श्रादर की दृष्टि से देखना शुरू न करते, तबतक उन्हें सन्तोप न होता। फिर इस विटेप को अधिक दिन तक जारी भी नहीं रहने दिया जा सकता। सौभाग्यवश उनके यशों का लालन-पालन दूसरी परिस्थिति में हुश्रा और वे व्यवस्था को स्वाभाविक और अनुकूल समझने लगे । कुछ घोटाला करने वालों ने, जो चालाक थे, जब देखा कि सोविएटवाद लाभदायक है तो पश्चाताप किया और ठीक राह पर धागये। किन्तु यह दिल्कुल सम्भव है कि जबतक जार के जमाने के मध्यम श्रेणी के लोग सव खत्म न हो जायंगे, तबतक जान-बूझ कर होने वाली शरारत जारी रहेगी। लोगों की अक्सर यह धारणा होती है कि क्रान्ति के बाद सब
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