पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/२०७

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२०० समाजवाद : पूंजीवाद जाती है और श्रावश्यक सुधार-योजनायें उससे मंजूर करवाली जाती है। इन योजनाओं को बनाने में उसका कोई हाथ नहीं होता। पार्लमेण्ट-प्रणाली में एक बड़ा दोप यह आगया है कि कोई भी श्रादमी तवनक सत्ता और सरकारी नौकरी प्राप्त नहीं कर सकता, जब- तक कि वह पार्लमेण्ट या धारा-सभा में चुना न जाय । और चुनाव- कार्य इतना पतनकारक और खर्चीला हो गया है कि एक गरीब श्रादमी तबतक उसमें सफल नहीं हो सकता जबतक वह अपने जीवन का अच्छे- से-अच्छा भाग उसके लिए न लगादे। इसके विपरीत एक धनवान, जिसका वढे लोगों से सम्बन्ध हो, चन्द हफ्तों में किसी निर्वाचन क्षेत्र से कामयाब हो सकता है । गरीय वर्ग के उम्मीदवार कामयाब होने के बाद भी वहस करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते । उनमें यदि कोई अपना व्यक्तित्व रखता हो तो वह प्रधानमंत्री भी बन सकता है, किन्तु यह तभी होता है जब पार्लमेण्ट को यह विश्वास हो जाता है कि वह बात करने के अलावा कुछ न करेगा। किन्तु ऐसे उदाहरण नवयुवक क्रान्तिकारी नेताओं के लिए शिक्षाप्रद सिद्ध होते हैं। वे यह समझने लगते हैं कि यदि उनको पंगुपन से बचना हो तो उन्हें पार्लमेण्ट में जाने का मोह छोड़कर अपने व्यक्तिगत अनुयायियों का एक सैनिक दल , खड़ा करना चाहिए, ताकि उसके जरिये पार्लमेण्टी ताकतों को दवाया जा सके । किन्तु ऐसा करना कुछ आसान नहीं होता । इस प्रकार के प्रयत्नों में अनेकों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा है। पर कुछ असाधारण रूप से सफल भी हुए। यद्यपि दोनों नेपोलियन परास्त होकर या तो कैद- खाने में या निर्वासन में मरे, किन्तु एक तेरह वर्ष तक और दूसरा अठारह वर्ष तक सम्राट रहा । अभी यह कहना कठिन है कि हमारे जमाने के प्रसिद्ध तानाशाह वेनितो मुसोलिनी और हेर हिटलर का क्या भविष्य होगा। किन्तु यह सत्य है कि दोनों ही अनेक वर्षों से अपने राष्ट्रों के प्रधान सूत्रधार हैं। थोड़ी देर के लिए कल्पना कीजिए कि आप सके और योग्य सुधारक