रूसी साम्यवाद २०१ यनाई जायं, प्रसवारों द्वारा प्रचार हो, स्कूलों और विश्वविद्यालयों में फासिस्ट शिक्षा दी जाय और उसके शासन की कम-से-क्रम पालोचना हो। इस प्रकार एक अच्छे नेता की अधीनता में कुछ समय के लिए फासिस्टवाद फलता-फूलता है धीर पूर्णनः लोकप्रिय और लोकतंत्रात्मक सिद्ध होता है। यही कारण है कि लोगों का फासिस्टवाद की ओर मुकाय है। और यह यान भी है कि श्रीमत नागरिक स्वभाव से और शिना से फासिस्ट होता है और यह मुधारकों और फ्रान्तिकारियों को राजद्रोही सनकियों का अल्प-संख्यक दल समझना है। यद्यपि हिंसा- और लूट-मार द्वारा श्रमजीची संस्थाओं के विनाश की यात हमारे अन्त:- करण को याघात पहुंचाती है, किन्तु उनका राजकीय विभागों में परिवर्तित होजाना एक संयुक्त मोर्चे को जन्म देता है और जो श्रमजीवी शक्तियां प्रवाहशील और विरोधी टुकदियों में बंटी होती हैं, वे एक ठोस तच के रूप में एक्न हो जाती हैं। लोकतंत्र का यह सिद्धान्त है कि सार्वजनिक कार्य नब का कार्य है, किन्नु व्यवहार में यह सिद्धान्त काम नहीं देता, पयोंकि सयका काम किसी का काम नहीं हुमा करता। इस सिद्धान्त के कारण सार्वजनिक कामों के प्रति वास्तविक जिम्मेदारी की भावना नष्ट हो जाती है । अतः फासिस्टयाद में एक अधिनायक या प्रधान अफसर मुकर्रर किया जाता है जो किसी भी दशा में अपनी जिम्मेदारी की उपेक्षा नहीं कर सकता। यह खयाल भ्रमपूर्ण है कि चुनाय द्वारा जो म्युनिसिपल या पार्लमंगट का मेम्बर बनता है वह उस अफसर के सामान ही जिम्मेदार होता है जिसे कि पहली ग़लती पर था अयोग्य सिद्ध होने पर तुरन्त बरखास्त किया जा सकता है। फासिस्टबाद की एक विशेषता यह भी है कि वह दलगत येहूदा विरोध का सारमा कर देता है। पार्लमेण्ट-प्रणाली में यह होता है कि एक दल शामन करने का प्रयास करता है और दूसरा उसके मार्ग में रूकावटें ढालना है। जिस व्यवस्था में इतने लाभ हों, वहाँ कोई नेपोलियन पार्लमेण्ट को उखाड़ दे सकता है और लोग उसे राष्ट्र का माता कह कर वोट दे सकते हैं। किन्तु इसकी पकड़ यह है कि
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