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विभाजन कैसे करें ?


साम्यवाद की उपयोगिता का पता लग जायगा । यदि सड़को की जगह कथा रेतीला रास्ता ही रहने दिया जाय तो हमारी तांगा, बन्धी आदि सवारियों और योझा ढोने वाली बैलगाड़ियाँ हमें बड़ी कष्टकर प्रतीत होगी। तब हमको मालूम हो जायगा कि साम्यवाद वास्तव में एक सुविधाजनक व्यवस्था है। साम्यवादी व्यवस्था के अनुसार खर्च की हुई सम्पत्ति से सभी लोगों को समान मुख मिलता है।

पुल की तरह जिस चीज़ का व्यवहार हर एक आदमी करता है हम राष्ट्रीय सम्पत्ति में से उसी की व्यवस्था कर सकते हैं; या जिससे हर एक को लाभ पहुँँचे वही चीज़ सामाजिक सम्पत्ति बनाई जा सकती है । पानी की तरह हम शराब का ऐमा प्रबन्ध नहीं कर सकते कि उसे शरावी जितनी चाहें उतनी पा सकें। ऐसी शरीर और मस्तिष्क को विगाड़ देने वाली और बुराइयों को जन्म देने वाली चीज़ के लिए तो लोग कर न दे कर जेल जाना पसन्द करेंगे। इसलिए जिस चीज़ को सब काम में नहीं लेते या जिसको सब पसन्द नहीं करते उसे समाज की सम्पत्ति बनाने से तो झगड़े ही उठेंगे।

लोग वागों, नालाबों, खेल के मैदाना, पुस्तकालयों, चित्रशालाओं, श्रन्वेपणालयों, प्रयोगशालाओं और अनायवघरों के लिए कर दे सकते हैं; क्योंकि वे इन्हें उपयोगी और सभ्यता के लिए आवश्यक समझते हैं।

चीजों का इतना विभाजन कुछ तो कौटुम्बिक साम्यवाद द्वारा और कुछ सडको, पुलों आदि विषयक कर-दाताओं के आधुनिक साम्यवाद द्वारा किया जा सकता है, किन्तु अधिकाँश वेटवारा हमें रुपये के रूप मेंही करना पड़ेगा। क्योंकि रुपये से हम जो चाहें खरीद सकते हैं, दूसरों को नहीं सोचना पड़ता कि हमको क्या चाहिए।

दुनिया में रुपया एक अत्यन्त सुविधाजनक वस्तु है। उसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता । कहते हैं कि रुपया सब बुराइयों की जड़ है; किन्तु यह उसका अपराध नहीं है कि कुछ लोग उसे मूर्खता या कंजूसीवश अपनी आत्माओं से भी अधिक प्यार करते हैं।