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पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/२५

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समाजवाद : पूंजीवाद कि एक सुन्दर युवती पतिव्रता स्त्री की तुलना में दुराचरण द्वारा कहीं अधिक कमा सकती है ? डाक्टर और वैरिस्टर जब सामान्य मजदूर की अपेक्षा अधिक पैसा माँगते हैं तो वे कह सकते है कि उनके एक-एक मिनट के पीछे उनकी वर्षों की मेहनत लगी हुई है। हरएक श्रादमी यह स्वीकार करेगा कि साधारण मजदूर और डाक्टर-वैरिस्टर की मजदूरियों में अन्तर रहता है; किन्तु यह कह सकना बड़ा कठिन है कि समय अथवा रुपये-पैसे के रूप में उस अन्तर का ठीक परिमाण क्या है और क्या होना चाहिए। इसी- लिए हमको उत्पत्ति और मांग के नियम का श्राश्रय लेना पड़ता है। कुछ कामों का ठोस परिणाम निकलता है और कुछ का नहीं। उदाहरण के लिए किसी खाती ने जानवरों को खेत में जाने से रोकने के लिए लकड़ी का एक फाटक बनाया। यह उसकी मेहनत का ठोस फल हुआ, जिसको तबतक वह अपने कब्जे में रख सकता है जबतक उस को उसके बनाने की मजदूरी न मिल जाय । किन्तु वह देहाती लदका, जो खेत पर पक्षी उडाने के लिए हन्ला किया करता है, अपने काम का ऐसा कोई परिणाम नहीं बता सकता; हालाँकि उसका काम खाती के काम जितना ही आवश्यक होता है। डाकिया कुछ नहीं बनाता, वह चिट्टियाँ और पार्सलें बांटता है। पुलिस का सिपाही कोई चीज़ नहीं बनाता और सैनिक न केवल बनाता ही नहीं है, उल्टा पदार्थों को नष्ट करता है । डाक्टर, वकील, पुरोहित, धारा-समानों के सदस्य, नौकर, राजा-रानी और अभिनेता- ये सभी कौनसी ठोस चीजें बनाते हैं ? जब ये काम कर चुकते हैं तो उनके पास ऐसा कुछ नहीं होता, जिसे तोला या मापा जा सके और तदनुसार उनको मजदूरी दी जा सके। अतः यह स्पष्ट है कि हरएक अपने श्रम से जितना पैदा करे, उम्मको उतना देने की अथवा हरएक के समय का मूल्य रुपये, पाने, पाई में श्रांकने की कोशिश करना बेकार है। उसमें हम सफल नहीं हो सकते। __कुछ लोगों का यह कहना है कि योग्यता के अनुसार सम्पत्ति का विभाजन होना चाहिए । उस दशा में पालसियों और दुष्टों को कुछ न