विभाजन की सात योजनायें मिलेगा और वे नष्ट हो जायेंगे तथा जो कुछ सम्पत्ति होगी, वह भले, परिश्रमी और क्रियाशील लोगों को मिलेगी और वे फले-फुलेंगे। जो लोग बाराम से रहते हैं, उन में से बहुत से समझते हैं कि धाज-कल ऐसा ही होता है। उनकी यह धारणा रहती है कि परिश्रमी, समझदार और मितव्ययी लोगों को कभी प्रभाव का सामना नहीं करना पढता और पालसी, शराबखोर, जुपयाज, येईमान दूसरी योजना और दुश्चरित्र कंगाल होते हैं। वे कह सकते हैं कि सदाचारी मजदूर की अपेक्षा दुराचारी मजदूर को काम प्राप्त करने में अधिक कठिनाई होती है; जो किसान या जमींदार जुया खेलता है और अनाप-शनाप खर्च करता है उसकी ज़मोन हाथ से निकल जाती है और वह कंगाल हो जाता है तथा जो व्यापारी सुस्त होता है और अपने धन्धे की तरफ ध्यान नहीं देता, वह दिवालिया हो जाता है; किन्तु इससे यह सिद्ध नहीं होता कि उन को जो कुछ मिलता है वह उनका योग्य हिस्सा होता है। इससे इतना ही पता चलता है कि कुछ कमजोरियो और बुराइयों के कारण मनुष्य दरिद्र हो जाता है। किन्नु साथ ही कुछ ऐसी बुराइयाँ भी हैं जिनके कारण मनुष्य धनी बन जाता है । कटोर, स्वार्यो, लालची, निर्दयी और अपने पड़ोसियों से लाभ उठाने के लिए सदा तत्पर रहने वाले लोग, यदि इतने बुद्धिमान हों कि अपने हाथों से अपने पांवों पर कुल्हाड़ी न मारें तो, शीध्र ही धनवान बन जाते हैं। इस के विपरीत गरीब घर में पैदा हुए उदारचेता, समाज-सेवी और मिलनसार लोग, जबतक उन में असाधारण प्रतिभा न हो, गरीब ही रहते हैं। इतना ही नहीं, श्राज जैसी स्थिति है, उस में कुछ ग़रीब ही पैदा होते है और कुछ सोने के पालने में जन्म लेते हैं। कहने का मतलब यह है कि वे चरित्र-निर्माण के पहले ही धनी और गरीब की श्रेणियों में बंट जाते हैं। यह स्पष्ट है कि श्राज योग्यतानुसार सम्पत्ति का विभाजन नहीं होता। इस समय श्राम हालत यह है कि थोड़े से आलसी बहुत मालदार हैं और अनेकों कठोर परिश्रम करने वाले अत्यन्त कंगाल हैं। भारतीय किसान, जिनको भर-पेट भोजन और तन ढंकने
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