पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३१
निर्धनता या धनिकता?

निर्धनता या धनिकता? शौर घातक बुराइयों का उन्हें सदा डर रहेगा जो उनकी मजबूत पुलिस- चौकियों को पार करके कभी भी उन तक पहुंच सकती हैं। साथ ही जयतक दरिद्रता की सम्भावना रहेगी, हम विश्वासपूर्वक यह नहीं कह सकते कि हम कभी भी उस के शिकार न होंगे। यदि हम दूसरों के लिए खड्डा ग्बोदें तो स्वयं भी उस में गिर सकते हैं। यदि हम दरार को सुली छोड़ दे तो खेलते समय हमारे बच्चे उस में गिर सकते हैं। हम रोज ही देखते हैं कि अत्यन्त निर्दीप और भले कुटुम्ब दरिद्रता के खुले हुए खड्ढे में गिर रहे हैं, ऐसी दशा में हम कैसे कह सकते हैं कि अगली दङ्गा हमारी बारी नहीं होगी? जिन अपराधों के लिए लोगों को जेल भेजना चाहिए उन अपराधों के लिए दरिद्रता के रूप में सजा देने की कोशिश करना किसी भी राष्ट्र के लिए सम्भवतः सब से बडी मूर्खता होगी। किसी बालसी श्रादमी के बारे में यह कहना श्रासान है-रहने दो उसको गरीव, श्रादमी होने का उसे उचित पुरस्कार मिला है। गरीबी उसको अच्छा सबक सिखा देगी। ऐसा कह कर हम स्वयं इतने बालमी बन जाते हैं कि नियम बनाने के पहले थोड़ा भी नहीं सोचते । चाहे वे मुस्त हो या तेज़, मद्यपी हो या मविरोधी, धर्मात्मा हा या दुरान्मा, मितव्ययी हो या लापरवाह, बुद्धिमान हो या मूख, हम किसी भी अवस्था में लोगों को गरीव नहीं रहने दे सकते । यदिवे सजा के पात्र हैं तो उन्हें और किसी तरीके से सजा देंगे; कारण, केवल दरिद्रता जितना नुकसान उनके निर्दोष पड़ोसियों को पहुंचाएगी उसका श्राधा भी उनको न पहुंचाएगी । यह सार्वजनिक खतरा और व्यक्तिगत दुर्भाग्य दोनों ही हैं। इस को सहन करना राष्ट्रीय अपराध है। अतः हम को यह मान लेना चाहिए कि सम्पत्ति के उचित frभाजन की यह एक आवश्यक शर्त है कि हरएक को उस का इतना हिस्सा मिले कि वह गरीची से दूर रह सके । इंग्लण्ड में यह कोई विल्कुल नई वात नहीं है । रानी ऐलिजावेथ के जमाने से इंग्लैण्ड का यह कानून रहा है कि किसी को भी दरिद्वावस्था में न रहने दिया जाय । कोई भी चाहे वह