पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/४४

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असमान आय के दुष्परिणाम

किसी भी गृहस्थ को सव से पहिले यह तय करना पड़ता है कि उसको किन-किन चीज़ों की सबसे अधिक आवश्यकता है और कौनसा काम वह बिना कष्ट उठाए कर सकता है। इसका यह अर्थ हुधा कि र गृहस्थ को अपनी आवश्यकतानुसार चीज़ों का क्रम प्राथमिक नियत कर लेना चाहिए। उदाहरण के लिए, घर में आवश्यकताओं तो काफी भोजन भी न हो और घर की मालकिन की उपेक्षा इन की शीशी और नकली मोतियों की माला खरीदने में अपना सारा रुपया खर्च कर दे तो वह मिथ्याभिमानिनी, मूर्खा और कुमाता कहलायगी, किन्तु दूरदर्शी महिला केवल इतना ही कहेगी कि वह कुप्रबन्धक है जिसे यह भी नहीं मालूम कि रुपया पास हो तो पहिले क्या खरीदना चाहिए । जिस स्त्री में यह समझने की भी शक्ति न हो कि पहिले भोजन, वस्त्र, मकान आदि की आवश्यकता होती है और इत्र की शीशी और नकली अथवा असली मोतियों की माला की याद में, वह गृहस्थो का भार ग्रहण करने योग्य नहीं है। हमारा यह मतलव नहीं कि सुन्दर चीजें उपयोगी नहीं होती । अपने उचित क्रम में वे बहुत उपयोगी और विल्कुल ठीक है, किन्तु उनका नम्बर पहिले नहीं पाता । किसी बालक के लिए उसकी धर्म-पुस्तक बहुत उपयोगी हो सकती है, किन्तु भूखे बालक को दूध-रोटी के बजाय धर्म-पुस्तक देना पागलपन होगा । स्त्री के शरीर को अपेक्षा उसका मन अधिक आश्चर्यजनक होता है, किन्तु यदि शरीर को भोजन न दिया जाय तो मन कैसे टिक सकता है ? इसके विपरीत यदि उसके शरीर को भोजन दें तो मन अपनी और शरीर दोनों की चिंता कर लेगा। भोजन का नम्बर पहिला है। __हम को समस्त देश को एक बड़ा घर और सारी जाति को एक बड़ा कुटुम्ब मान कर चलना चाहिए (वास्तव में यह है भी ऐसा ही ।) और