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असमान प्राय के दुष्परिणाम

असमान प्राय के दुष्परिणाम सनमटार सादमी ने कभी भी इनकी इच्छा नहीं की । यात यह है कि जय कभी दुनरों की अपेण पर कुटुम्ब यहुन अधिक धनी होंगे तभी इन युराइयों का जन्म होना निश्चित है । धनी शादी जब पति और पिना यन कर मी को अपने माय घसीटता है नव यह भी यही करता है। तब अन्य लोगों की भांति यह भी पहिले भोजन, वस्त्र और मझान का प्रबन्ध परता है। गरीय पादमी भी यही करता है। किन्तु अपनी शक्तिमर गचं पर दालने पर भी ग़रीय श्रादमी की ये अावश्यकतायें पूर्णनः पूरी नहीं होती, भोजन पूरा नहीं पड़ता, कपड़े पुराने चार मैले राने, रहने के लिये एक कोठरी या उसका कुच भाग मिल पाना है और यह भी थम्बाम्ध्यार होता है। दूसरी ओर धनी भादमी गानदार कोटी में रहता है, व गाता और पहनता है। फिर भी उसके पास अपनी रचियों और फ्ल्पनाओं को मन्नुष्ट करने तथा दुनिया में यदापन जमाने के लिये काफ़ी रपया पर रहता है। ग़रीब बादमी करता है-"मुझे और रोटी, और कपदे, तथा अपने कुटुम्ब के लिये अधिक प्रच्या घर चाहिए, किन्तु मेरे पास उसके लिये गर्व बग्ने को कुछ नहीं है।" धनी श्रादमी कहता है.."मुझे कई मोटर जल-नौकाएं, पत्नी और पुत्रों के लिये हीरे-मोती और घने जंगल में एक गिकारगाट चाहिए।" स्वभावतः व्यवसायी मोटरें और जल-नौकाएं बनाने में जुट पढ़ते हैं, अपारीका में जाकर हीरे बुदवाते हैं, समुद्र की नह में मानी निगलवाते हैं और मिनटों में शिकारगाह सड़ी कर देते हैं। गरीय थादमी की ओर कोई ध्यान नहीं देता जिसकी थावस्यकतायें तात्कालिक होती है, किन्नु जिसकी जे गाली रहती हैं। इसी बात को दूसरे गन्द्रों में तो कह सकते हैं। गरीब श्रादमी जिन चीजों का कभी अनुभव करता है उनको यनाने के लिए मजदूर लगाना चाहता है। वह चाहता है कि लोग पकाने, धुनने, सीने और मकान बनाने का काम करें। किन्नु यह पाक-शास्त्रियों और बुनकर मास्टरों को इतना गया नहीं दे सस्ता जिससे वे अपने अधीन काम करने वालों को मजदूरी चुका सकें। उधर धनी श्रादमी अपनी पसन्द