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समाजवाद : पूंजीवाद

१० ममाजवाद : पूंजीवाद के काम करवाने के लिये खासी मजदुरी देता है। इस तरह की मजदूरी पाने वाले सव लोग कठोर परिश्रम क्यों न करते हों; किन्तु उसका फल यह होता है कि भूवों को भोजन मिलने के बजाय धनिकों के धन में ही वृद्धि होती है । वह श्रम उचित स्थान पर नहीं होता, न्यर्थ जाता है और देश को गरीब वनाए रखता है। इस स्थिति के पक्ष में यह दलील नहीं दी जा सकती कि धनी लोगों को काम देते हैं । काम देने में कोई विशेषता नहीं है। हत्यारा फांसी लटकाने वाले को काम देता है और मोटर चलाने वाला बच्चों पर मोटर चलाकर ढोली ले जाने वाले को, ढाक्टर को, कफन बनाने वाले को, पादरी को, शोकसूचक पोशाक सीने वालों को, गाढ़ी खींचने वाले को, कव खोदने वाले को । संक्षेप में, इतने सारे योन्य लोगों को काम देता है कि जब वह अात्म-हत्या करके मर जाता है तो सार्वजनिक हित-साधक के नाते उसकी मूर्ति खडी न करना कृतघ्नता की निशानी प्रतीन होती है ! यदि रुपए का समान विभाजन हो तो जिस रुपए से धनी ग़लत काम करवाते हैं उससे योग्य काम करवाया जा सकेगा। यदि भविष्य की साधारण स्त्रियां आज की उच्च-से-उच्च धनी महिलाओं से अच्छी न हॉगी तो वह सुधार हमारे घोर असन्नोप का कारण होगा, और वह असन्तोप होगा देवी असन्तोप ! अतः हम विचार करें कि मानव प्राणी होने की हैसियत से लोगों के चरित्र पर समान श्राय का क्या असर होगा। ___ कुछ लोग कहते हैं कि यदि हम लोग अधिक अच्छे श्रादमी चाहते हैं तो जिस तरह पश्चिम में उत्तम घोड़ों की और उत्तम सूअरों की नस्ल पैदा करते हैं, उसी तरह श्रादमियों की भी पैदा करें। निस्सन्देह हमको ऐसा करना चाहिए, किन्तु इस में दो कठिनाइयां हैं। पहिले तो जैसे हम गाय-बैलों, घोड़े-घोड़ियों, सूअर-सूअरियों की नोढ़ियां मिलाते हैं, वेसे स्त्री-पुरुषों की जोड़ियां विना उनको इस विषय में चुनाव की स्वतंत्रता दिए नहीं मिला सकते । दूसरे यदि मिला भी सके तो जोड़ियां कैसे मिलानी गहिएं, इसका हमें ज्ञान न होगा । कारण, हमको पता