असमान प्राय के दुष्परिणाम ४७ ऐसी पुरानी पुस्तकें मिल सकती हैं जिनमें उनके धनी लेखकों या लेखिकाओं ने अपने राज-रंग के दैनिक कार्य-क्रम का उल्लेख कर धनिकों के बालसी होने के प्रागेप का निराकरण किया है। किन्तु उस राग-रंग का शिकार होने के बजाय नो महक पर झाड लगाना कहीं अधिक श्रच्छा है। इसके अलावा कुल धनी यावश्यक सार्वजनिक कार्य भी करते हैं। यदि शासक-वर्ग को राजनैतिक सत्ता अपने हाथ में रखनी हो तो उसे वह काम भी करना ही चाहिए। उसके लिए वेतन नहीं दिया जाता और यदि दिया भी जाता है तो इनना कम कि सम्पत्तिवान लोगों के अलावा उसको और कोई नहीं कर पाता । इंगलैण्ड में उच्च विभागीय सिविल सर्विस की परीक्षायें ऐसी रखी जाती हैं कि केवल बहु-व्यय माध्य शिक्षा पाने वाले व्यक्ति ही उनको पास कर सकते हैं। इन उपायों द्वारा वह काम धनिकों के हाथों में रक्खा जाना है। पार्लमेण्टी पदों पर मुख्यतः धनी लोगों के होते हुए भी जब कमी उन पदों के लिए काफी वेतन निश्चित करने का प्रयन्न किया गया तो उन्होंने उसका विरोध किया । सेना में भी उन्होंने ऐसी स्थिति पैदा करने की भरसक कोशिश की कि जिसमें एक अफसर अपने वेतन पर निर्वाह न कर सके । इसका वे अपने वर्ग के प्रालसी बने रहने के अधिकार की रक्षा के लिए पार्लमेण्ट, राजनैनिक विभाग, मेना, अदालतों और स्थानीय सार्वजनिक संस्थाओं में काम करते हैं । इस प्रकार काम करने वाले धनिकों को ठीक 'प्रों में पालसी धनिक नहीं कहा ना सकता; किन्तु सार्वजनिक हित की दृष्टि से यह कहीं अधिक श्रच्छा होगा कि वे अपने वर्ग के अधिकांश धनिकों की भांति रागरंग में अपना समय विनावें और शासन का काम उन सबेतन भोगी कर्मचारियों और मंत्रियों पर छोड़ जिनके और जनसाधारण के हित समान हैं। पश्चिमी देशों में इस थालसी वर्ग की बहुत सी स्त्रियाँ अाजकल सन्तति नियमन के अप्राकृतिक उपायों का श्राश्रय लेती हैं। किन्नु उनका उद्देश्य बसों की संख्या और उत्पत्ति के समय का नियमन करना नहीं
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