४६ समाजवाद : पूँजीवाद राष्ट्रीय मंत्र मान लेने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। ___जवतक असमान श्राय रहेगी तबतक न्याय में पक्षपात भी रहेगा, क्योंकि कानून अनिवार्यतः धनिकों द्वारा बनाए जायेंगे । सब लोगों को काम करना पडे, भला यह क़ानून धनी लोग कैसे बना सकते हैं ? ___पश्चिमी देशों में जो लोग नये-नये धनी होते हैं उनके बच्चे महा श्रालसी होते हैं। जिसे वहाँ उच्च-जीवन कहा जाता है, वह पुराने धनिकों के लिए एक संस्कृत-कला है जिसे सीखने के लिए आलसियों की कठोर उम्मेदवारी की ज़रूरत होती है। किन्तु उन सृष्टि अभागे भाग्यवानों को न तो शारीरिक व्यायामों की शिक्षा मिली होती है और न वे पुराने धनियों की सामाजिक रीति-नीति से ही परिचित होते हैं। वे मोटरों में बैठ कर होटलों के चक्कर काटा करते हैं। उनका अर्थहीन भटकना, चाकलेटी मलाई खाते फिरना, सिगरेट फूकना और पंचमेली शराब पीना, मूर्खता- पूर्ण उपन्यासों और सचित्र समाचार-पत्रों से मनोरंजन करना सचमुच दयनीय होता है। __ हिन्दुस्तान में भी रईसों के लहके कुत्ते मारते फिरते हैं। ताश, शतरंज खेलने में अपना वक्त गुजारते हैं। कितने ही जुए में बर्बाद हो जाते हैं । रईसों को भी पडे-पढ़े खाने और भोग-विलास में लिप्त रहने के सिवा और कोई काम नहीं होता। उनका काम उनके मुनीम और कारिन्दे करते हैं । यही कारण है कि उनकी तौंदें बढ़ जाती हैं और वे हमेशा बीमार रहते हैं। किन्तु ऐसे धनी भी होते हैं जो अपनी शक्ति से अधिक परिश्रम करते हैं। उन्हें पुनः स्वस्थ रहने के लिए प्राराम लेने की ज़रूरत श्रा पडती है। जो लोग जीवन को एक लम्बी छुट्टी बनाने की कोशिश करते हैं, उन्हें जीवन से भी छुट्टी लेने की आवश्यकता प्रतीत होने लगती है। श्रालस्य में जीवन विताना इतना स्वाभाविक और भार-स्वरूप होता है कि पश्चिमी देशों में आलसी धनिकों की दुनिया में भी अत्यन्त थका देने वाली हलचलें वरावर होती रहती हैं। वहां की लाइयो रियों में
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