६२ समाजवाद : पूंजीवाद करते हुए देखना, लिखने की तरह नहीं, पुस्तक पढ़ने की तरह आराम करना है। किन्तु अनिवार्य श्रम के अलावा (जिसका न करना अपराध माना जायगा ) जो सम्भवतः दो-तीन घण्टे का ही रह जायगा, जो अवकाश हमें मिलेगा, उसमें हम न तो फुटबाल या हाकी ही खेलते रहेंगे और न दूसरों को काम करता हुआ ही देखते रहेंगे, न स्वयं पुस्तक ही पढ़ते रहेंगे। उसमें हम अपने मनोरंजन की ख़ातिर राष्ट्र-हित का बहुत सारा काम ऐसा कर देंगे जिसे आज प्रेम या रुपये की ख़ातिर नहीं कराया जा सकता । अपने प्रिय-कार्यों में कितने ही लोग तो इतने व्यस्त रहते है कि उससे उनके स्वास्थ्य विगड़ जाते हैं और वे जल्दी ही मर भी जाते हैं, इसलिए तत्ववेत्ता हर्बर्ट स्पैन्सर ने कहा कि लोगों को काम के पीछे पागल भी न बन जाना चाहिए। श्राय के समान विभाजन के विरुद्ध एक और मूल आपत्ति यह है है कि उसके लाभ यदि होंगे तो शीघ्र ही कई बच्चों वाले दम्पति उन्हें हइप कर जायेंगे। इसका तो यह अर्थ हुआ कि वे - यह मानकर चलते हैं कि दुनिया में वर्तमान दरिद्रता आगामी का का कारण पावादी की अधिकता है अर्थात् आज की दुनिया में जितने लोग रहते हैं पृथ्वी उतनी खाद्य - सामग्री पैदा नहीं करती। . यदि थोड़ी देर के लिए इसे सत्य भी मान लें तो भी इससे श्राय के समान विभाजन की आवश्यकता नहीं है, यह सिद्ध नहीं होता । कारण, जितनी कम सामग्री हो, उसका समान विभाजन उतना ही अधिक आवश्यक हो जाता है जिससे वह यथा-सम्भव सर्वत्र पहुँचाई जा सके और कमी की बुराइयों के अलावा असमानता की बुराइयाँ पैदा न हों। किन्तु यह सच नहीं है। दरिद्रता का कारण 'अत्यधिक आबादी और कम उत्पत्ति नहीं है, बल्कि यह है कि लोग जो सम्पत्ति और अवकाश पैदा करते हैं उसका इतना असमान विभाजन होता है कि जन- संख्या का कम-से-कम आधा भाग अपनी श्राजीविका स्वयं पैदा करने के बजाय दूसरे श्राधे भाग के श्रम पर जीवन-निर्वाह करता है। क्यास
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