समान श्राय की आपत्तियां है। यही कारण होता है कि उद्योग-प्रधान देशों की लडकियां घरेलू काम की यनिस्वत कोलाहल-पूर्ण कारखानों के काम को अधिक पसन्द करती हैं। नहरों, रेल की लाइनों, सड़कों श्रादि पर काम करने वाले लोगों का काम खुले में होने के कारण कठिन होने पर दफ्तर की क्लर्की से अधिक मनोरंजक होता है। किन्तु कुछ काम स्वतः ही मनोरंजक और आनन्ददायक होते हैं जैसे तत्वज्ञानियों और मित्र-भिल कलाकारों के काम । ये लोग बिल्कुल ही काम न करने के बजाय बिना किसी मार्थिक लाभ का विचार किए काम करेंगे। किन्नु समान विभाजन की पद्धति के अधीन यह अनिवार्य श्रम का नहीं, सम्भवतः अवकाश का फल होगा। यासकल किनने ही मनोरंजन व्यर्थ थका देने वाले और मूर्खता- पूर्ण होते है, किन्तु उन्हें पलेशपूर्ण श्रम की नीरसता मिटाने और परिवर्तन की खातिर लोग सहन कर लेते हैं। कार्नवाल लई ने तो कहा है कि यदि ये व्यर्थ के मनोरंजन न होते तो जीवन अधिक सुखमय होता । कार्नवाल लुई में यह समझ सकने की युति थी कि ये शहरी मनोरंजन मनोरंजन नहीं करते और रुपये की बर्बादी करते है और स्वभाव को बिगाड़ देते हैं। एक स्वस्थ पुरुष के लिए समय बर्याद जाने से बढ़कर और कोई सराय यात नहीं हो सकी। हम देखते हैं कि स्वस्थ वालक जबतक धक नहीं जाते तबतक कुछ-न-कुछ बनाने या करने का प्रयास करते हैं। हम भी अपना समय बिताने और स्नायु समूह और मन को गति देने के लिए ऐसा भ्रम करना चाहते हैं जिसमें कुछ प्रानन्द और अनुराग भी हो। __ हमको श्रम और अवकाश का अ श और प्राराम का अन्तर भी जान लेना चाहिए। श्रम वह जो हमें करना चाहिए, अवकाश वह जिसमें हम यथारुचि काम करें और श्राराम वह जिसमें कुछ न किया जाय, मन और शरीर को थकान उतारने दी जाय । बहुधा हमारी रुचि का काम भी उतना ही श्रमकारक होता है जितना वह काम जो हमें करना चाहिए। जैसे फुटबाल या हाकी के खेल है। दूसरों को काम
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