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पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/७६

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समाजवाद का प्राचरण कैसे करे ?

ममाजवाद का प्राचरण कैसे करें! ६६ किन्तु समाजवादी लोग भी निश्चयपूर्वक यह नहीं कह सकते कि समाजवादी युग में यिना कृत्रिम सन्तति-नियमन के प्रति जन-संग्या को सीमा में रसंगी ही। युन्दि-संगन मागं नो यह है कि दुनिया की दशा सुधारी जाय धीर देखा जाय कि होता क्या है। अन्यधिक थायादी की कठिनाई अभी पैदा नहीं हुई है। जो कुछ है यह उसका कृतिम रूप है जो प्राय के श्रममान विभाजन से पैदा हुधा है और जिमका परिमार्जन श्राप के समान विभाजन से हो सकता है। यह बान यान में रपनी चाहिए कि जबतक दो श्रादमी एक शादी की शपेशा और पाप लाग्य श्रादमी इस लाग्य श्रादमियों की अपेमा दुगुने से अधिक पैदा कर सकेंगे, नबतक पृथ्वी अधिक उत्पत्ति के नियम के अधीन रहेगी। यदि कभी जन-संग्या उस सीमा तक पहुँच जाय कि गप्वी उमका योग्य निर्वाह न कर सके तो पृथ्वी न्यून उत्पत्ति के नियम के अधीन होगी। इस समय पृथ्वी अधिक उत्पत्ति के नियम के घधीन है। कुछ अर्थशानी यह भी कहते हैं कि भाजकल पृथ्वी न्यून उत्पत्ति के नियम के अधीन है। ऐसे थर्थशास्त्रियों को यह उल्टा पाठ धनिकों के चालकों के लिए निर्मित विश्वविद्यालयों में पढ़ाया गया है । यह उनका भ्रम है जो प्राय के समान विभाजन से फी दूर हो जायगा।

७:

समाजवाद का आचरण कैसे करें ? यहाँ तक हम यह तय कर चुके कि एक स्वतन्त्र समाज में समान विमाजन को योजना ही स्थायी और समृद्धिकारक हो सकती है। किन्तु श्रय सवाल यह उठता है कि इस योजना पर श्रावरण कैसे किया जाय । जिन्हें इन पंक्तियों को पढ़ कर यह उत्साह मिलेगा कि देश में समाजवाद चाहिए. उनमें से कुछ लोगों का प्रयाल होगा कि ऐसा करने के लिए समाजवादियों में मिल जाना चाहिए, किन्तु इसमें एक श्रापत्ति है और