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समालोचना-समुच्चय


अनुचित काम हुआ है। जिन हिन्दी-भाषा-भाषियों से २००० कापियाँ ख़रीदी जाने की आशा कोशकार या प्रकाशक करते हैं उनके सुभीते का ख़याल रखना उनका सर्वापेक्षा अधिक कर्तव्य था। अस्तु।

विश्वकोष बड़े ही महत्व और काम की चीज़ है। विद्या, विज्ञान, कलाकौशल, शिल्प, व्यवसाय, वाणिज्य, भूगोल, इतिहास, जीवनचरित आदि कोई भी विषय ऐसा नहीं जिस का थोड़ा बहुत समावेश अँगरेजी के विश्वकोष में न हुआ हो। अतएव यदि हिन्दी में ऐसा ही कोष तैयार हो जाय तो हिन्दी के सौभाग्य की प्रशंसा नहीं हो सकती। बँगला के विश्वकोष की जो समालोचनायें निकली हैं उनसे सूचित होता है कि वह अनेक अंशों में अँगरेजी कोष के समकक्ष है। उसमें प्रान्तिकता अवश्य है। परन्तु वङ्गभाषा में होने के कारण बङ्गला भाषा और बङ्गाल-प्रान्त की विशेषताओं को यदि उस में स्थान न मिलता तो इससे उस में न्यूनता आ जाती। अतएव उस की यह प्रान्तिकता भूषण ही में गिनी जा सकती है, दूषण में नहीं। यदि इसी बँगला-विश्वकोष का अनुवाद हिन्दी में किया जाता तो वही प्रान्तिकता, हिन्दी संस्करण में, अवश्य दूषण-भाव को प्राप्त हो जाती। इस के सिवा बँगला-विश्वकोष के आदिम खण्डों को निकले कई वर्षे हो चुके। तब से अनेक नये नये तथ्य ज्ञात हुए हैं; अनेक पुरानी बातें भ्रमपूर्ण सिद्ध हो चुकी हैं। इस कारण भी बँगला का अनुवाद हिन्दी में होना इष्ट न था। ख़ुशी की बात है, वसु महोदय हिन्दी-विश्वकोष को अनुवाद के रूप में न निकालेंगे। अतएव यदि इस कोश का काम योग्यता-पूर्वक होगा तो बँगला की प्रान्तिकता भी दूर हो जाएगी और नई खोज से भ्रमपूर्ण तथा असत्य सिद्ध हुई पुरानी बातें भी इस में स्थान न पा सकेंगी।