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पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/१११

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हिन्दी-विश्वकोष

इस विश्वकोष के कर्ता वसु महाशय का लिखा हुआ कोई हिन्दी-लेख या ग्रन्थ अब तक प्रकाशित हुआ नहीं सुना गया। अतएव लोगों को शङ्का हो सकती थी कि वे इस काम को सुचारु रूप से कर सकेंगे या नहीं। इसी से इस शङ्का के उत्थान के लिए वसु महाशय ने जगह ही नहीं रक्खी। नमूने के तौर पर हिन्दी-विश्वकोष का जो पहला खण्ड निकला है उस में लिखा है― हिन्दी-विश्वकोष के सम्पादकीय विभाग में हिन्दी के कई विद्वान् नियुक्त किये गये हैं। हिन्दी के ज्ञाताओं में बहुत ही थोड़े लोग ‘विद्वान्' पद की सीमा के भीतर समझे जाते हैं। उन थोड़े में से भी कई विद्वान् विश्वकोष के सम्पादकीय विभाग में काम करने के लिए मिल गये, यह विश्वकोष के प्रकाशकों और उस के विद्वान् प्रणेता का अहोभाग्य ही समझिए।

यदि इस विश्वकोष के काफ़ी ग्राहक हो गये और यह निकलता गया तो इस का प्रत्येक खण्ड बड़े बड़े ३२ पृष्ठों का होगा। यह कोश सचित्र होगा और हर महीने निकलेगा।

हमारी सम्मति में यह विश्वकोष संग्रह करने योग्य है। तैयार हो जाने पर अनेकानेक ज्ञातव्य बातों का यह खजाना होगा। केवल हिन्दी भाषा जाननेवालों को इससे ऐसी सहस्रशः बातों का ज्ञान हो सकेगा जिन का ज्ञान और किसी तरह होना उनके लिए प्रायः असम्भव ही समझिए। यदि इस में सैकड़ों नहीं हज़ारों दोष हों, यहाँ तक कि यदि इस के प्रत्येक पृष्ठ पर भी दो दो चार चार भूलें हों तो भी इस का निर्भ्रम अंश अवशिष्ट रह जायगा। उतने ही के लिए यदि यह ख़रीदा जाय तो भी हिन्दी के प्रेमियों को लाभ ही होना चाहिए। हाँ, भ्रान्तिपूर्ण ज्ञान से हानि हो सकती है। पर यदि इन बातों के शुद्ध ज्ञान की प्राप्ति में एक