"यद्यपि मूल-लिपि के असली रूप अब नहीं मिलते, किन्तु उनके अस्थिपञ्जरों से मूल-रूप का अनुसन्धान हो सकता है। अनुसन्धान करने के लिए अक्षरों के साथ ही पैदा होनेवाले अङ्क और रेखा ( यें ) हमें सुगम रास्ता बता रहे ( रही ) हैं, उसी मार्ग से हम उनके असली रूप तक पहुँच सकते हैं"।
इसके आगे लेखक ने अपने कल्पित बीजों, अङ्कों और रेखाओं के मूल-चिन्हों के चित्र दिये हैं।
देवनागरी अक्षरों के सम्बन्ध में इस पुस्तक के प्रणेता का वक्तव्य उन्हीं के मुँह से सुनिए---
"एक एक परमाणु से पृथ्वी बनी है। अतः पृथ्वी में वही गुण हैं जो परमाणुओं में थे। भाषा-रूप पृथ्वी भी अक्षर-रूप परमाणु से बनी है। अक्षर शब्द के उस टुकड़े को कहते हैं जिसका फिर टुकड़ा न हो सके x x x x भाषा उत्पन्न होने के पूर्व उसके कारणरूप अक्षर आकाश में विद्यमान थे क्योंकि आकाश अक्षरों ( शब्दों ) का कारण है। अक्षरों के ही योग से धातु और धातुओं से शब्द और वाक्य बनते हैं। इससे ज्ञात होता है कि ये सार्थक हैं"।
"अाकाश का गुण शब्द है, जो आकार रूप से नित्य व्याप्त रहता है, किन्तु ऊँच नीच भाव से उसके सात भाग हैं, जिन्हें स्वर ( अर्थात् स रि ग म प ध नी ) कहते हैं। उसी शब्द के स्थान-प्रयत्न-भेद से १९ विभाग और हैं, जिनको अक्षर कहते हैं। इन्हीं १९ के सर-संयोग से ६२ या ६३ या ६४ अथवा और अनेक अक्षर बन जाते हैं। यही १९ अपने विकृत रूप से संसार भर में व्याप्त पाये जाते हैं। x x x x जितना शब्द समूह है, चाहे प्राणियों की भाषा में हो या बाह्यध्वनि में, सब मूल-अक्षरों के