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समालोचना-समुच्चय

अन्तर्गत हैं। कोई भी शब्द तोड़ो और जोड़ो, उन्हीं मूल-अक्षरों को पाओगे। बस उनके ही संयम से, सृष्टि-नियम के अनुसार, विज्ञान के अनुसार, समस्त शब्दों का क़ुदरती ज्ञान प्राप्त होगा"।

"बच्चे माको 'मा' और पानी को 'पा' आदि कहते हैं। इन शब्दों का जब विज्ञान द्वारा अर्थ जाँचा जाता है तो 'माता' और 'पानी' ही होता है।

अक्षरों का कभी नाश नहीं होता। वे आकाश में व्याप्त रहते हैं। वे विज्ञानमय हैं। उनका ज्ञान, सृष्टि के आदि में, हमारे पूर्व-पुरुषों को ईश्वर की कृपा ही से हो गया। यह सब तो हुआ। परन्तु 'मा' का वैज्ञानिक अर्थ माता ही होता है और 'पा' का पानी ही, इसका विवेचन भी तो करना था। लेखक को यह बात प्रमाणपूर्वक सिद्ध करके दिखानी थी। परन्तु आपने नहीं सिद्ध की। यदि आपका कथन ठीक है तो हमारे बच्चों की तरह अँगरेज़ो, चीनियों, जापानियों और अरबवालों के बच्चे भी क्या आपके कल्पित अर्थो में 'मा' और 'पा' का प्रयोग करते हैं? यदि नहीं, तो इस व्यभिचार का कारण क्या? विज्ञान तो सब देशों और सब जातियों के लिए एक ही रूप में रहता है। फिर यदि आपके बतलाए हुए नियम में कहीं विपरीत-भाव देख पड़े तो उसका कारण क्या? लेखक ने अक्षरार्थ और धात्वर्थ के जो थोड़े से नमूने पुस्तकान्त में दिये हैं उनमें पा---का अर्थ 'रक्षा करना' और मा--- का 'मापना' है। पानी से बच्चे की रक्षा होती है, इससे यदि उसका वैज्ञानिक उच्चारण 'पा' माना जाय तो दूध के विषय में लेखक की क्या राय है? जन्मोत्तर वर्ष डेढ़ वर्ष तक तो बच्चे की रक्षा पानी से कम, दूध से ही अधिक होती है। फिर यदि मा---का अर्थ 'मापना' है तो यह अर्थ माता में किस तरह घटित हो सकता है?