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ओंकार-महिमा-प्रकाश

बड़ा सबूत यह है कि श्रव्यक्तबोध के कर्ता ने ऊँ के जिस आकार-प्रकार के आठ टुकड़ों से लिपियों और चराचर की उत्पत्ति की कल्पना की है ठीक उसी आकार-प्रकार के आठ टुकड़ों से इस पुस्तक के लेखक ने भी लिपियों आदि का निकलना बतलाया है। टुकड़ों पर पड़ी हुई संख्यायें सिर्फ बदल दी गई हैं। उदाहरणार्थ अव्यक्तबोध का एक नम्बर का टुकड़ा ऊँकार-महिमा-प्रकाश में आठ नम्बर का टुकड़ा हो गया है। इसी तरह और भी समझिए। इस पुस्तक में अव्यक्तबोध की अपेक्षा एक बात अधिक है। अर्थात् अव्यक्तबोध में सिर्फ देवनागरी अक्षरों ही के चित्रपट दिये गये हैं; पर इसमें नागरी के सिवा गुजराती, उर्दू और अँगरेजी के भी हैं। किन्तु एक बात कम भी है। ऊँकार से मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट, पतङ्ग आदि कैसे बने हैं---इस के चित्र भी अव्यक्तबोध में दिये गये हैं, जो इस पुस्तक में नहीं हैं।

संभव है, पण्डित श्रीनिवास शर्मा ने अव्यक्तबोध न देखा हो। जो कुछ उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है वह उनकी निज की सूझ हो। एक ही बात दो आदमियों को भिन्न भिन्न समय में सूझ सकती हैं। पर दोनों पुस्तकों में जो समानता हमें देख पड़ी वह हमने लिख दी। इसके लिए पुस्तक-कर्ता कृपा करके हमें क्षमा करें।

[ जुलाई १९०८ ]