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पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/१४४

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समालोचना-समुच्चय

माथुर जी का रामायण-ज्ञान

[ १३ ]

छः वर्ष से कायस्थ-समाचार नामक एक मासिक पुस्तक, अंगरेज़ी में, प्रयाग से, निकलती है। यह उत्तम पुस्तक है। इसमें बहुत उपयोगी और मनोरञ्जक लेख रहते हैं। इस पुस्तक के मार्च वाले नम्बर में लाला हरदयाल ( ? ) माथुर का लिखा हुआ एक लेख निकला है। इस लेख का नाम "देशी भाषायें और हमारा कर्तव्य है"। लाला साहब ने देशी भाषाओं की शोचनीय अवस्था पर खेद प्रकट किया है और इन प्रान्तों के विद्वानों को हिन्दी में लेख और पुस्तकें लिखने के लिए सलाह दी है। इसके लिए हम माथुर महाशय के परम कृतज्ञ हैं। जब तक अंगरेज़ी के पदवीधारी पण्डित हिन्दी पर कृपा न करेंगे तब तक उसकी उन्नति न होगी। उनको जगाने के लिए अँगरेज़ी में ऐसे ऐसे लेखों की बड़ी ही आवश्यकता है। जहाँ तक हम जानते हैं, माथुर महाशय ने भी हिन्दी पर अब तक कृपा नहीं की। उनका कोई लेख हमारे देखने में नहीं आया। इसलिए दूसरों को मार्ग दिखलाने के लिए, हम उनसे प्रार्थना करते हैं कि वही पहले हिन्दी में "श्रीगणेशाय नमः" करें। उनके लेख का दर्शन करने के लिए हम उत्सुक हो रहे हैं।

माथुर महाशय हिन्दी के पक्षपाती हैं। इसलिए हम उनको हृदय से धन्यवाद देते हैं। परन्तु, जान पड़ता है, हिन्दी के पक्षपाती होकर भी वे हिन्दी बहुत ही कम जानते हैं। तथापि आपने हिन्दी- साहित्य के दोष दिखलाये हैं; संस्कृत-साहित्य के दोष दिखलाये हैं; और तुलसीदास की रामायण पर तो बहुत ही बड़े बड़े कटाक्ष किये हैं। चूँकि, जान पड़ता है, वे हिन्दी और संस्कृत-साहित्य