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पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/१४७

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माथुर जी का रामायण-ज्ञान

भरत, केवट और अनसूया की उक्तियों में क्या आपको कोई सुन्दर भाव नहीं मिले? लङ्का और मिथिलापुरी का वर्णन भी क्या आप स्थल-वर्णन में नहीं गिनते? धनुषयज्ञ, सीताहरण, अड़्गद और हनूमान का लङ्कागमन आदि घटनाओं का वर्णन भी आप हृदयहारी नहीं समझते? हम यही कहेंगे कि आपने रामायण को नहीं पढ़ा। यदि पढ़ते अथवा समझते तो कभी आप ऐसा न कहते।

[ जून १९०३ ]