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उर्दू-शतक


की उन्नति होने लगती है, और विद्वान् लेखक ग्रन्थ लिख लिख कर उसके साहित्य की पूर्ति करने लगते हैं, तब वैज्ञानिक ग्रन्थ भी बन जाते हैं। बँगला, मराठी और गुजराती में कितने वैज्ञानिक कोश हैं? पर आप मेडिकल लाइब्रेरी, कलकत्ता और गवर्नमेंट सेन्ट्रल बुकडिपो बम्बई, की पुस्तकों का सूचीपत्र उठा कर देखिए। आपको वैज्ञानिक विषयों पर यदि अधिक नहीं तो दस बीस पुस्तकें तो ज़रूर ही, इन्हीं दो दुकानों में, मिल जायँगी। हमारी हिन्दी इस विषय में विशेष सौभाग्यशालिनी है; क्योंकि उसमें एक वैज्ञानिक कोश भी बन गया है। परन्तु आप देखते रहिए, इसकी सहायता से कितनी वैज्ञानिक पुस्तकें तैयार होती हैं। कोई वैज्ञानिक पुस्तक लिखने या किसी का अनुवाद करने के लिए कई प्रकार की योग्यता दरकार होती है। जिसमें वैसी योग्यता है उसका काम बिना वैज्ञानिक डिक्शनरी के भी चल सकता है; परन्तु यदि वह नहीं है तो हज़ार डिक्शनरियों के होने पर भी न तो कोई वैज्ञानिक ग्रन्थ लिख ही सकता है और न उसका अनुवाद ही कर सकता है।

कुछ लोगों का ख़याल है कि अच्छी हिन्दी-कविता यदि किसी भाषा या बोली में हो सकती है तो ब्रजभाषा में हो सकती है। यह भी उसी तरह की बात है जिस तरह की दो बातों का उल्लेख हमने ऊपर किया। हमारी तुच्छ राय तो यह है कि कविता के लिए भाषा बहुत ही गौण साधन है। जिन गुणों के कारण पद्य-रचना "कविता" में परिगणित हो सकती है वे गुण जिस व्यक्ति में नहीं हैं वह चाहे ब्रजभाषा का कितना ही प्रचण्ड पण्डित क्यों न हो, और वह चाहे कितने ही परिश्रम से ब्रजभाषा में कविता क्यों न करे, उसकी कविता का कदापि आदर न होगा। उसकी रचना कविता के स्वाभाविक और सर्वश्रेष्ठ गुणों से कभी विभूषित