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समालोचना-समुच्चय

न होगी। कविता पढ़ते समय पढ़नेवाला यदि तद्गत रस में डूब न गया तो वह कविता कविता नहीं। और यह बात क्या अकेली ब्रज-भाषा ही ने अपने हिस्से में ले ली है? भाषा कोई क्यों न हो, यदि कवि अच्छा है, तो उसकी कविता अवश्यमेघ सरस होगी। इसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण अाज हमें मिला है। यह प्रमाण उर्दूशतक नाम की एक छोटी सी पुस्तक है।

उर्दूशतक में १०० पद्य हैं। छन्द हैं---घनाक्षरी और सवैया। भाषा बिलकुल उर्दू है। उर्दू नहीं कठिन उर्दू; बल्कि यों कहना चाहिए फारसी-मिश्रित उर्दू। इसे रीवा-निवासी किसी रामानन्द नामक कवि ने बनाया है और बनारस के लहरी प्रेस ने छाप कर प्रकाशित किया है। इस काव्य की एक कापी भेजने के लिए हम लहरी प्रेस के मैनेजर के बहुत कृतज्ञ हैं। इसकी कविता श्रृङ्गाररस की है। परन्तु हमें इसके अनेक पद्यों ने मोहित कर दिया। कवि ने किसी किसी पद्य को इतना सरस बना दिया है कि आप चाहे जितनी दफे उसे पढ़िए कभी आपका जी न ऊबेगा। फिर भी उसे पढ़ने की इच्छा होगी। रमणीक और सरस कविता की यही कसौटी है---

क्षणं क्षणं यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः।

जो लोग बोल-चाल की भाषा में कविता के विरोधी हैं उन्हें इस काव्य को कृपा करके ज़रूर पढ़ना चाहिए और विचार करना चाहिए कि हिन्दी के बहुप्रयुक्त घनाक्षरी और सवैया छन्द में यदि क्लिष्ट उर्दू भाषा में भी पद्यरचना करने से कविता सरस हो सकती है, तो मामूली बोल-चाल की भाषा में यदि कोई पद्य-रचना करे तो उसका विरोध करना कहाँ तक न्याय है? बात यह है कि कवि अच्छा होना चाहिए। यदि कवि अच्छा है