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समालोचना-समुच्चय

रीवां ही के दरबार में विद्वानों और कवियों का आदर अधिक होता रहा है। १५६३ ईसवी में प्रसिद्ध गायक तानसेन महाराजा रामचन्द्र के आश्रित थे। इस दरबार में असनी के हरिनाथ कवि का भी ख़ूब सम्मान हुआ था। महाराजा विश्वनाथसिंह स्वयं अच्छे कवि थे; इसलिए कवियों और पण्डितों की उन्हें बड़ी चाह थी। उनका बनाया हुआ अानन्द-रघुनन्दन नाटक प्रसिद्ध है। महाराजा रघुराज सिंह ने तो काव्यप्रियता में सब से अधिक नाम पाया। उन्होंने अनेक पुस्तके लिखीं। उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ आनन्दाम्बुनिधि नामक श्रीमद्भागवत का अनुवाद है। एक पादरी साहब ने बाइबिल का अनुवाद बघेली बोली में किया है। पादरी केलाग ने भी अपने हिन्दी-व्याकरण में इस बोली के विषय में कुछ लिखा है।

छत्तीसगढ़ी बोली को कई शाखायें हैं। जङ्गली अनार्य भी आर्यों की बोली बोलने लगे हैं। परन्तु इस प्रयत्न में वे अच्छी तरह कामयाब नहीं हुए। उनकी बाली आर्य और अनार्य बोलियों की खिचड़ी हो गई है। बिँझवारी, भुलिया और बैगानी श्रादि बोलियाँ उनमें मुख्य हैं। छत्तीसगढ़ी में नाम लेने योग्य भाषा-साहित्य नहीं। वहाँ के प्रसिद्ध प्रसिद्ध गीतों और क़िस्सों को बाबू हीरालाल काव्योपाध्याय ने अपने व्याकरण में लिखा है। यह व्याकरण छत्तीसगढ़ की बोली का है।

डाक्टर साहब ने बोलियों के जो नमूने दिये हैं उनमें से बैसवारे की बोलियों के नमूनों को हमने ध्यान से देखा। हमारी जन्म-भाषा बैसवारी ही है। इसीलिए हमने औरों की अपेक्षा उसी के नमूनों पर विशेष विचार किया। उससे हमारा यह सिद्धान्त स्थिर हुआ कि जिन लोगों ने डाक्टर साहब को ये नमूने भेजे हैं या तो उनका