सम्बन्ध इस प्रान्त से बहुत ही कम था, या उन्होंने ठीक ठीक नमूने एकत्र करने की ओर यथोचित ध्यान ही नहीं दिया। क्योंकि इन नमूनों में फरक जान पड़ता है।
जिस बोली के वे नमूने हैं उसे लोग ठीक ठीक वैसा नहीं बोलते। सम्भव है, इस प्रकार की गड़बड़ और बोलियों के नमूने देने में भी हुई हो। हमारा इतना सौभाग्य कहाँ कि इस लेख को परम विद्वान् डाक्टर ग्रियर्सन साहब देखें। वे न सही, और ही लोग शायद इस पर विचार करें। अतएव हम बैसवारी बोली के एक आध नमूने की आलोचना करना चाहते हैं।
अवधी बोली देहात में कई प्रकार के अक्षरों में लिखी जाती है। उन अक्षरों का सर्वसाधारण नाम कैथी है। परन्तु सब अक्षर एक से नहीं होते। उनमें अकसर थोड़ा बहुत भेद होता है। अतएव डाक्टर साहब को चाहिए था कि उन सब लिपियों के भी नमूने वे इस पुस्तक में देते। गोंडा जिले को एक लिपि का जो नमूना उन्होंने दिया है वह काफी नहीं। ऐसे कितने ही नमूने इस लिपि के हैं। और और भाषाओं की प्रायः सभी लिपियों के नमूने आपने और और जिल्दों में दिये हैं। पर, नहीं मालूम, अवधी और बुन्देलखण्डी के दो चार नमूने आपने क्यों नहीं दिये? शायद मिले ही न हो। या उनके लिए कोशिश ही न की गई हो। या किसी ने आपसे कह दिया हो कि और कोई नमूने हैं ही नहीं। ख़ैर।
डाक्टर साहब कहते हैं कि रायबरेली ज़िले में वही बोली बोली जाती है जो प्रतापगढ़ जिले के पश्चिम में बोली जाती है। फरक़ इतना ही है कि रायबरेली की बोली में उर्दू के शब्द और मुहाविरे अधिक हैं; क्योंकि यह ज़िला लखनऊ से मिला हुआ है। डाक्टर साहब की इस राय से हम सहमत नहीं। रायबरेली का