पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/१७१

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पूर्वी हिन्दी

इससे यह साफ़ जाहिर है कि जो नमूना साहब ने दिया है उससे रायबरेली की बोली नहीं मिलती। पिछली बोली का तरीक़ा ही जुदा है—उसमें 'उ' और 'वा' की बहुत अधिकता है। उर्दू के शब्द उसमें एक ही दो हैं; सो भी अपभ्रंश के रूप में।

यही दशा लखनऊ के ज़िले की बोली की भी है। उसके नमूने साहब ने हिन्दी-लिपि में नहीं दिये, क्योंकि वे उर्दू में लिखा कर साहब के पास भेजे गये थे। आपने उनका रूपान्तर अँगरेज़ी लिपि ही में देकर सन्तोष किया है। पण्डित श्यामविहारी