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समालोचना-समुच्चय

जो भाग प्रतापगढ़ से मिला हुआ है उसकी बोली में विशेष अन्तर नहीं है। परन्तु रायबरेली ज़िले के और भागों की बोली पश्चिमी प्रतापगढ़ की बोली से बहुत अधिक भेद-भाव रखती है। रायबरेली बैसवारे का केन्द्र है। इससे साहब को चाहिए था कि यहाँ की बोली के विषय में वे अधिक छानबीन करते। जिले के हाकिमों ने न मालूम किस आधार पर उन्हें लिख दिया कि प्रतापगढ़ और रायबरेली की बोली प्रायः एक सी है। हम अपने घर पर रायबरेली की बोली कोई ३७ वर्ष से बोलते हैं। अतएव हम अपने तजरुबे और अपनी निज की शहादत के आधार पर कह सकते हैं कि डाक्टर साहब की राय सही नहीं। डाक्टर साहब को इस विषय में इतना भ्रम हो गया है कि उन्होंने रायबरेली, अर्थात् बैसवारी बोली के केन्द्रस्थल, का एक भी नमूना देने की ज़रूरत नहीं समझी। पश्चिमी प्रतापगढ़ की जिस बोली को उन्होंने रायबरेली की भी बोली बतलाया है उसका उन्हीं का दिया हुआ नमूना नीचे देकर हम उसके बराबर बराबर उसका सही रूप देते हैं। पाठक देख लें कि दोनों में कितना अन्तर है।[१]


  1. प्रतापगढ़ के पश्चिम की अवधी बोली का नमूना।
    याक घरे-माँ कथा कही जात रही। [१]पण्डित जौन कथा कहत रहे सगरे गाँव का न्योतिन—रहै। सुनवैयन माँ याक अहिरौ आवत—रहै। ऊ कथवा सुनतीं बेरा र‍्वावा बहुत करै और पण्डितौ वहि—का प्रेमी जान कै वहि-का नीकी तना बैठावैं और खूब खातिर करैं। याक दिना पण्डितौ पूँछिन कि राउत तूँ र‍्वावत बहुत हौ। तुमका काउ समुझ परत हौ। तौ अहिरवा औरौ सेवाइ र‍्वावे लाग औ कहिस कि महाराज मोरे याक भैंसि बिआन रही। कुछ बगद गवा औ ऊ बहुतै बेराम हुइ-गै और पड़ौना का नेकचाइ न देत रही। तौ पड़ौना दिना भर चिच्यान औ साँहीँ जूनी मर गा। तौन पण्डित वहै की नाईं तु हूँ दिना भर चुकरतरहत हौ। मैं-का डेर लागत है कि कतहूँ तुहूँ न ओकरी नाईं मर जा।


    ^ यह ग़लत है पण्डित न्योता नहीं देता; जिसके यहाँ कथा होती है वह देता है।

    रायबरेली की बोली का नमूना।
    याकन के घरमाँ कथा होति रहै। उन गाँव भरे का न्यौता दीन रहै। सुनवैयन माँ एक अहिरौ रहै। कथा सुनै की बेरिया वहु र‍्वावा बहुत करै। जी पण्डित कथा बाँचति रहैं उइ वहिका प्रेमी जानि कै निकीतना बैठावैं औ खुब खातिर करैं। याक दिन पण्डित पूँछेन कि भगानि भाई तुम यतना र‍्वावति काहे का हौ। तुमका का जानि परत है। यह सुनिकै अहिरवा औरौ ज्वार ज्वार र‍्वावै लाग। वह ब्वाला कि महाराज मोरे एकु भैंसि बियानि रहै। वह नजर्याय गै औ पड़ौना का नगच्याय न देइ। पड़ौना दिन भरि चिल्लान और सँझली जून मरिगा। वही की तना पण्डित तुमहूँ दिन भरि चिल्लाति हौ। यहि ते महिँ का डेरु लागत है कि कतौ तुमहूँ ना वही की नाहित मरि जाव।


    लखनऊ की (और बाराबंकी की भी) अवधी बाली का नमूना।
    (डाक्टर साहब का दिया हुआ)
    याक गाँव मा याक लम्बरदार के नान्ह-सारी बिटीवा रहै। जब व-की उमर सोरह सतरह बरिस-के भै, वह जून लम्बरदार-का वह-के बियाह-की फिकिर बाढ़ी। वह बेरिया नाऊ बाम्हन कै बोलाय कै लड़िकवा का ढूढ़ै पठयन। थोड़े दिनन-मा याक लड़िका मिला। वह के साथ बिटीवा-कै बनावन्त बना, और बाम्हन पूछा गवा, और बियाह की तैयारी भै। लड़िकवा-कै बाप आवा और लेय देय के पाछे बत-कहाव होय लाग। हज़ार रुपैया बहुत कहे सुने तै-भवा। तब लम्बरदार राजी-खुशी से घर गे और बारात कै दिन बदा गा। दुलहा-कै बाप पन्दरह हजार सवाग लै-कै बड़ी धूमधाम से दुलहिन के घरे आवा और द्वारे-चार होय लाग। होम दच्छिना-के माँगे-मा पण्डित से तकरार भै, लाठी चलै लाग। बहुत मनई दूनो कैत घायल भयन। तब बरात रिसाय चली। वही समय-मा गाँव के भलेमानुस यकठ्ठा होइ-कै बरात मनाय लायन। चौथे दिन बियाह भवा और भात बढ़ार खुसी से खायन; और बिदा होय-कै अपने घर आयन।

    लखनऊ की ठीक अवधी बोली का नमूना।
    (पण्डित श्यामविहारी मिश्र का दिया हुआ)
    याक गाँव में याकै लम्बरदार के नान्हिसरी बिटिया रहै। जब वहिकी उमिरि स्वारा सत्रह बर्स कि भै तब लम्बरदार क वहि के बियाह कि फिकिरि बाढ़ी। वहे बेरिया नाऊ बाँमन क बोलाय क लरिका ढूँढै पठइनि। थोरे दिनन में एकु लरिका मिला। वहि से बिटेवा क बनावन्तु बना औरु बाँभनु पूँछा ग औ बियाहे कि तयारी भै। लरिका क बापु आवा और लेय देय क बतकहाव होय लाग। हज़ार रुपया बहुतु कहे सुने ठीक भ। तब लम्बरदार राजी खुसीते घरै गे औ बरात क दिनु बदा ग। दुलहा क बापु पन्द्रह हजार बराती लैकै बड़ी धूमधाम ते दुलहिनि के घरे आवा और दुवारे कि चारु हाय लागि। होम दच्छिना के माँगे मँ पण्डित से तकरार ह्वै गै और लाठी चलै लागि। बहुत मनईं दूनौं कैती घायल भे। तब बरात रिसाय चली। वहे बेरियाँ गाँव के भले मानुस यकठ्ठा ह्वै के बरात मनाय लाये। चौथे दिन विवाहु भ औ बराती ल्वाग भातु बढ़ार खुसी ते खाइनि औ बिदा ह्वै के अपने घरै आये।