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समालोचना-समुच्चय
आते हैं? यदि १५०००) रुपये में भी कोई विवाह ठहरे तो भी शायद ही इतने आदमी उसमें आवें। इस तरह का कथन एक प्रलापमात्र है। फिर कहीं लाखों में शायद एक ही आध विवाह ऐसा होता होगा जिसमें लाठी चलती हो। अतएव उसके जिक्र की इस नमूने में क्या जरूरत थी? इसे पढ़ कर विदेशियों के मन में यह सन्देह हो सकता है कि शायद हिन्दुस्तान में ऐसी ऐसी दुर्घटनायें बहुधा हुआ करती हों।
हमारी समझ में हिन्दुस्तान की सब बालियों के ठीक ठीक नमूने कोई नहीं दे सकता। एक ज़िले में कई प्रकार की बोलियाँ बोली जाती हैं। दो दो चार चार कोस पर बोलियाँ बदली हैं। उनका भेद-भाव कोई कहाँ तक बतावेगा?
यदि कदाचित् डाक्टर साहब के देखने में यह लेख आ जाय तो हमारी प्रार्थना है कि इस स्वल्प आलोचना के लिए वे हमें कृपापूर्वक क्षमा करें।
[ मई १९०५ ]