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अकबर के राजत्वकाल काल में हिन्दी

सकती। इन कवियों के पहले और पीछे जो कवि हुए हैं उन्होंने आश्रय न होने पर भी क्या इनसे कम कविता की है?

अगर अकबर की राजधानी आगरे में न होती तो क्या तुलसीदास रामायण, विनयपत्रिका और दोहावली आदि काव्य न बनाते? क्या केशवदास अपनी पुस्तकों की रचना न करते? क्या सूरदास का सूरसागर न बनता? इन लोगों ने न अकबर से कोई सम्बन्ध रक्खा, न उसकी राजधानी से। इनको छोड़ कर औरों में से कुछ ने यदि अकबर और आगरे से सम्बन्ध रक्खा भी तो उनका सम्बन्ध रखना न रखने के बराबर है, क्योंकि अकबर के ज़माने में हिन्दी को उन्नत करने योग्य उन्होंने कोई ग्रन्थ नहीं बनाये। अतएव इस कारण के विषय में विशेष कहने सुनने की ज़रूरत नहीं।

पण्डित सूर्यनारायण की राय है कि सोलहवीं शताब्दी के मध्य में हिन्दी प्रौढावस्था को पहुँच गई थी, इससे उसको उन्नति हुई। अच्छा अब इस बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में वह और भी अधिक प्रौढ़ हो गई है न? तो उस समय जो हिन्दी-काव्य बन गये उनसे उत्कृष्ट काव्य 'अब बनने चाहिए थे। पर तब से लेकर आज तक रामायण, रामचन्द्रिका और सूरसागर से भी बढ़िया और कितने ग्रन्थ बने। बढ़िया की तो बात ही नहीं, घटिया भी नहीं बने। फिर भला भाषा की प्रौढ़ता उस समय की हिन्दी-उन्नति का कारण कैसे मानी जा सकती है? मलिक महम्मद जायसी के समय में भाषा क्या कम प्रौढ़ थी?

हाँ, वैष्णव-धर्म उस समय ज़रूर ज़ोर पर था। उसके कारण हिन्दी की उन्नति मानी जाय तो मानी जा सकती है। परन्त थोड़ी ही। क्योंकि तुलसी और केशव के ग्रन्थ इस धर्म के ज़ोर पकड़ने के कारण नहीं बने।