सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/१८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७६
समालोचना-समुच्चय

हमारी समझ में अकबर के ज़माने में जो हिन्दी के अच्छे अच्छे ग्रन्थ बने और उनके द्वारा जो हिन्दी की उन्नति हुई वह एक आकस्मिक घटना है। दैवयोग ही कुछ ऐसा आ गया कि दो तीन अच्छे अच्छे कवि उस समय उत्पन्न हो गये। उनके ग्रन्थों के निर्माण का कारण न अकबर का आश्रय था, न देश में शान्ति की स्थापना, न राजधानी का आगरे में होना, न हिन्दी का प्रौढ़ता को पहुँच जाना। राजा विद्याव्यसनी होने से उसकी आश्रयदत्त भाषा की उन्नति होती है। विक्रमादित्य, हर्षवर्द्धन, भोज, जयचन्द आदि राजे इसके उदाहरण हैं। कवियों और पण्डितों ने इनके आश्रय में रह कर संस्कृत के अनेक उत्तमोत्तम ग्रन्थ बनाये; पर अकबर के दरबार के कवियों ने कोई ऐसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ नहीं बनाये जिनके कारण हिन्दी की उन्नति मानी जाय। जो उन्नति हुई है वह और ही कवियों की कृपा से हुई है।

आशा है, पण्डित सूर्यनारायण हमें अपनी इस स्वतन्त्र सम्मति के लिए क्षमा करेंगे। आपकी आज्ञा ही को मान्य करके हमने स्पष्टतापूर्वक सम्मति देने का साहस किया है।

[ नवंबर १९०७ ]