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समालोचना-समुच्चय

प्रभाव सा है। फिर, हिन्दी के अच्छे अच्छे कवियों के प्रकाशित और अप्रकाशित ग्रन्थ ढूँढ ढूँढ कर उनका अध्ययन करना और उन पर निबन्ध लिखना ऐसे पण्डितों के लिए और भी बहुत बड़ी बात है। ऐसे कवियों की कविता की समालोचना करना और निर्भय होकर उनके गुण-दोषों को दिखलाना और भी प्रशंसा की बात है। अतएव, ऐसी पुस्तक का प्रकाशित होना हिन्दी के सौभाग्योदय का सूचक है। और देशों के नहीं, तो भारत के कवियों में कालिदास का आसन अवश्य ही सब से ऊँचा है। ऐसे महाकवि को भी महाराज की पदवी नहीं प्राप्त हुई। कोई उसे कालिदास महाराज---नहीं कहता। परन्तु श्रीरामचन्द्र जी के परम भक्त और महात्मा होने के कारण तुलसीदास को---'गुसाई जी महाराज'---कहते हमने सैकड़ों आदमियों को अपने कानों सुना है। जिस महात्मा के सम्बन्ध में लोगों का यह विश्वास है कि वह मुर्दो को ज़िन्दा कर देता था----विधवाओं को सधवा कर देता था---और पापियों को पुण्यात्मा बना देता था उसी की परम पुनीत मानी गई रामायण के गुणों का वर्णन करके उसके दोषों का भी निःसङ्कोच होकर उद्घाटन करना लेखकों की न्यायशीलता, मानसिक दृढ़ता और सत्यपरता का परमोज्ज्वल उदाहरण है। जो मनुष्य समाज के भय की परवा न करके अपने मन की बात कह डालने से नहीं हिचकता उसके मानसिक बल और वीरत्व की जितनी प्रशंसा की जाय कम है। जिस समाज में विचारस्वातन्त्र्य नहीं वह चिरकाल तक जीवित नहीं रह सकता। और जिस साहित्य में स्वतन्त्र-विचार-पूर्ण पुस्तकें नहीं वह कभी उन्नत नहीं हो सकता। हिन्दी के सौभाग्य से इस पुस्तक के लेखकों में विचार-स्वातन्त्र्य है। यह लेखकों के किए कम गौरव की बात नहीं।