पुस्तक का, लेखकों का और प्रकाशक मण्डली का नाम सुनहले अक्षरों में हैं। पुस्तक के वाह्य, आभ्यन्तर, दोनों ही रूप बहुत लुभावने हैं।
पुस्तक में सब मिलाकर कुछ कम साढ़े चार सौ पृष्ठ हैं। मूल विषय नौ अंशों में विभक्त है। प्रत्येक अंश में एक एक कवि पर निबन्ध है। इन कवियों के नाम और निबन्धों की पृष्ठ-संख्या इस प्रकार है—
(१) तुलसीदास | ...... | १४० |
(२) सूरदास | ...... | ३२ |
(३) देव | ...... | ४६ |
(४) बिहारी | ...... | २८ |
(५) भूषण | ...... | १९ |
(६) केशवदास | ...... | ४१ |
(७) मतिराम | ...... | ७ |
(८) चन्द | ...... | ३१ |
(६) हरिश्चन्द्र | ...... | ४२ |
इसके सिवा ३१ पृष्ठों की एक भूमिका है। प्रकाशकों का निवेदन, सूचीपत्र, परिशिष्ट और अशुद्धि-संशोधन आदि कोई १८ पृष्ठों में हैं। समय की कमी के कारण सूरदास, भूषण, केशवदास और चन्द वरदायी पर लिखे गये निबन्ध, जिनकी पृष्ठ-संख्या केवल १२३ है, हम नहीं पढ़ सके। अतएव इस लेख में विशेषतः अवशिष्टांश ही की समालोचना होगी।
लेखकों का विचार-स्वातन्त्र्य
अंगरेज़ी भाषा की उच्च शिक्षा पाये हुए पण्डितों में हिन्दी-प्रेम का होना ही बहुत बड़ी बात है। इन प्रान्तों में इस बात का प्रायः