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पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/२०८

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समालोचना-समुच्चय

सीता का पता बतलाना आदि---उससे विभीषण का चरित बड़ा ही निन्द्य हो गया है। पृष्ठ ८८।

( ९ )---'दशरथ वृद्धावस्था तक कामी बने रहे'। पृष्ठ ९२।

( १० )---गोस्वामी जी से रामभक्ति के मारे इसका ( कैकेयी का ) शील गुण ठीक न उतारते बना और देवी सी कह कर इसे उन्होंने अन्त में पूरी पिशाची कर डाला और महा अनुचित बातें इसके मुँह से कहा डाली'। पृष्ठ ९४।

( ११ )---ऐसे महात्मा और महाकवि को बिना सोचे ( स्त्रियों की ) इतनी प्रचण्ड निन्दा। करना अनुचित था'। पृष्ठ ११०।

( १२ )---परशुराम और लक्ष्मण के विवाद का 'वर्णन गोस्वामी जी के सहज गाम्भीर्य्य के बिलकुल ही अयोग्य है'। पृष्ठ ११६।

( १३ )---रामचन्द्र के विषय में परशुराम के मुँह से---'संभु सरासन तोरि सठ करसि हमार प्रबोध' कहलाकर तुलसीदास ने---'परशुराम की पूरी नीचता दिखा दी है'; और फिर---"मैं तुम्हार अनुचर मुनिराया' आदि लक्ष्मण से कहलाकर मानों परशुराम को मूर्ख बनाया है। पृष्ठ ११७।

( १४ )---रामचन्द्र की महिमा बढ़ाने को गोस्वामी जी ने अन्यदेवताओं की प्रायः निन्दा कर दी है। सती-मोह इस कथन का पूर्ण प्रमाण है'। रामचन्द्र का सती को अपना प्रभाव दिखाना 'बहुत ही अनुचित हुआ'। 'सती से झूठ बोलाना भी अनुचित हुआ'। मरते समय सती का--'हरि से बर मँगवाना भी बेजा है'। पृष्ठ ११४।

( १५ )--रामचन्द्र के विवाह को शोभा बढ़ाने के लिये तुलसीदास ने महादेव के विवाह की शोभा बिगाड़ दी। पृष्ठ ११५।