डुपट्टा डाले-सजे बजे-बैठे हुए कविता लिख रहे हैं। क्या कवि पूरी पोशाक पहन कर ही कविता करने बैठते हैं? विहारी के चित्र में जो दृश्य दिखाया गया है उसके वर्णन में, नीचे, यह दोहा है---
मोछ मिरारत रसिक मनि लखहु विहारीलाल।
नर नारिन को न्हान हैं तकत खरे ढिग ताल॥
लेखकों ने जिसे महाकवि की उपाधि दी है उसे इस तरह तालाब के किनारे मोछ मरोड़ते हुए खड़ा करना और यह कहना कि नरों और नारियों, दोनों को, स्नान करते समय, देखने ही के लिए ये यहाँ आये हैं, बहुत ही अनुचित जान पड़ता है।
कवियों का श्रेणी-विभाग
जिन कवियों के चरित और जिनकी पुस्तकों की आलोचनायें हिन्दी-नवरत्न में हैं उन्हें लेखकों ने रत्न श्रेणी ( 'Reserved Class' ) में रक्खा है। परन्तु इस श्रेणी का लक्षण क्या है, यह उन्होंने नहीं बताया। यह कवि साधारण श्रेणी का है, वह नीच श्रेणी का; इसकी कविता उससे उत्तम है, उसकी उससे; यह अमुक की श्रेणी का है, वह अमुक की। यह तो लेखकों का कथन मात्र हुआ; यह कोई लक्षण नहीं। वे अपनी रुचि के अनुसार जिसको जैसा चाहें समझ सकते हैं। यदि किसी को रामायण से आल्हा अच्छा जँचे तो वह उसे ही रत्न समझ सकता है। पर यदि वह यह चाहता हो कि और लोग भी उससे इस विषय में सहमत हों तो उसे अपने मत की पुष्टि में कुछ कहना भी चाहिए। ऐसा करने ही से और लोग उसके मत की सारता या असारता की परीक्षा कर सकेंगे। लेखकों ने पहले तो तुलसीदास आदि नौ कवियों को रत्न-श्रेणी में रक्खा है। फिर इस श्रेणी के भी तीन टुकड़े किये हैं---बृहत्त्रयी, मध्यत्रयी और लघुत्रयी। पहली त्रयी में तुलसी, सूर