पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/२२१

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हिन्दी-नवरत्न

लिख दिया जाता। उसके न लिखे जाने और लेखकों के द्वारा 'उत्तम' और 'परमोत्तम' आदि विशेषणों के बेहद और बे-हिसाब प्रयुक्त होने से लेखकों की अनेक बातों में बेतरह शैथिल्य और असंयत भाव आगया है।

लेखकों ने जब होमर और शेक्सपियर आदि के ग्रन्थ अँगरेजी में पढ़े हैं तब, बहुत सम्भव है, उन्होंने जानसन के कविचरित और गिबन तथा ल्यकी के इतिहास भी पढ़े होंगे। अतएव यदि वे इन ग्रन्थकारों की रचना और शब्द-प्रयोग की तुलना अपनी इस पुस्तक की रचना और शब्द प्रयोग से करेंगे तो उन्हें तत्काल ही मालूम हो जायगा कि दोनों में कितना अन्तर है। इतिहास-लेखक ने जिसके लिए जो बात कह दी वह यदि, बिना उसकी इच्छा ही के, औरों के विषय में भी घटित हो गई तो वह इतिहास-लेखक अच्छे लेखकों में नहीं गिना जा सकता।

लेखकों ने रामचरितमानस को 'संसार-साहित्य का मुकुट' ( पृष्ठ ३८ ) माना है और अयोध्या-काण्ड के एक एक अक्षर को असाधारण ( पृष्ठ ५१ ) समझा है। आप लोगों की राय में इस काण्ड की रचना संसार के समस्त-साहित्यों की रत्न है'। ऐसी मन-मोहनी ( ? ) कविता' आप साहबों ने 'किसी भाषा में नहीं देखी'। तुलसीदास की कविता के विषय में आपकी राय है कि उसके---'शब्द शब्द में अद्वितीय चमत्कार देख पड़ता है'। अयोध्याकाण्ड में रामचन्द्र और भरत की बातचीत के समान---'सर्वाङ्गसुन्दर वार्तालाप कराने में किसी भाषा का कोई भी कवि समर्थ नहीं हुआ है'। लेखकों की---'जानिबकारी ( ? ) में तुलसीदास से बढ़ कर कभी किसी भी भाषा में कोई कवि संसार भर में कहीं नहीं हुआ'। रामचरितमानस की नीचे दी हुई चौपाइयाँ देखिए---