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समालोचना-समुच्चय

निरर्थक है। कृपाराम 'कवि-शिरोमणि' होकर भी और 'परम मनोहर दोहे' लिख कर भी विहारी की बराबरी के न समझे गये। मलिक महम्मद जायसी ने 'परमेोत्तम प्रेम-ग्रन्थ' लिखा, और नरसैया तथा हरिदास ने 'महात्मा' होने के सिवा 'परमोत्तम कविता' भी की। तिस पर भी वे केशवदास के पास आसन पाने के अधिकारी न समझे गये। इस दशा में लेखकों के 'शिरोमणि' 'महात्मा' और 'परमोत्तम' शब्द उस अर्थ के बोधक नहीं माने जा सकते जो अर्थ उनसे निकलना चाहिए। भूमिका के छब्बीसवें पृष्ठ पर लेखक-महाशयों ने लिखा है---'उत्तम कवि भी बहुत हुए पर बहुत ही अच्छे कवियों का एक प्रकार से प्रभाव सा रहा'। इससे ठीक ठीक कोई यह नहीं कह सकता कि उनके 'उत्तम' और 'बहुत ही अच्छे' में परस्पर कितना भेद है और कौन विशेषण कितनी अच्छाई और उत्तमता का सूचक है। उनके लिखने के ढँग से तो यही जान पड़ता है कि बिना विशेष सोच-विचार के उन्होंने इस पुस्तक में छोटे-बड़े, कवि, महाकवि, महात्मा और तदितर---सभी के लिए मनमाने 'उत्तम', 'परमोत्तम' और 'उत्तमोत्तम' विशेषणों का प्रयोग किया है। अतएव कवियों की उत्तमता या अनुत्तमता से सम्बन्ध रखनेवाली उनको सम्मतियाँ मानने योग्य नहीं। उनके जो जी में आया है लिख दिया है। आपटे ने 'उत्तम' शब्द का अर्थ---Best, Excellent, Foremost, Highest, Greatest--किया है, और 'परम' का अर्थ भी प्रायः वही, अर्थात्---Highest, Best, Most excellent, Greatest किया है। परन्तु लेखकों के उल्लिखित कितने ही काव्यकर्ता Double excellent कवि होकर भी रत्न-पदवी पाने के योग्य नहीं समझे गये। इस कारण इस बात की और भी अधिक आवश्यकता थी कि रत्न श्रेणी के कवियों का लक्षण साफ शब्दों में अच्छी तरह