"अंगद का राज्य छिन गया था इस कारण उनको यह जान पड़ा कि ब्रह्मा ने चन्द्रमा का सार भाग हर लिया अतः उसकी छाती में छेद हो गया",---
इसे पढ़ते ही हमें नैषधचरित का यह श्लोक याद आ गया--
हृतसारमिवेन्दुमण्डलं दमयन्तीवदनाय वेधसा।
कृतमध्यबिलं विलोक्यते धृतगम्भीरखनीखनीलिम॥
उपर उद्धृत किये गये हिन्दी-नवरत्न के वाक्य में वाक्य-विच्छेदक एक भी चिन्ह का न होना भी बहुत खटकनेवाली बात है।
रामचरितमानस पर एक बहुत ही उपादेय और मनोरञ्जक पुस्तक लिखी जा सकती है। तुलसीदास की कविता की विशेषतायें; तुलसीदास की उपमायें; तुलसीदास का चरित्र-चित्रण; तुलसीदास के प्राकृतिक दृश्य; तुलसीदास की राजनीति; तुलसीदास की साधारण नीति; तुलसीदास की वर्णित देशभक्ति; पितृभक्ति, भ्रातृभक्ति, मातृभक्ति और पतिभक्ति---आदि पर लिखने के लिए बहुत सामग्री है। खेद की बात है, हिन्दी-नवरत्न के विद्वान् लेखकों ने इस सामग्री का यथेष्ट उपयोग नहीं किया। जहाँ कहीं इन विषयों पर उन्होंने कुछ लिखा भी है वहाँ मार्मिकता से नहीं लिखा।
मतिराम
मतिराम की बनाई हुई रसराज नामक एक पुस्तक है। उसके विषय में नवरत्न के लेखकों की राय है कि उसमें मतिराम ने 'कुल नायका ( ? )---भेद कह के अन्त में कह दिया है कि भाव भेद में यह आलम्बन विभाग में आता है'। मतिराम की दूसरी पुस्तक ललितललाम है। उसमें अलङ्कार-वर्णन है। सब मिला कर ४४४