सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/२३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२९
हिन्दी-नवरत्न

भी केवल दो उदाहरण आपने दिये हैं। उनमें से एक है:---'उर में उरोज जैसे उमगत पाग है'। इसी अनूठेपन के कारण इस कवि को उपमा-अलङ्कार में आपने सबसे बढ़ गया बताया है। यह सब तो हुआ। देवजी अच्छे कवि थे, इसमें भी कोई सन्देह नहीं। परन्तु जो कुछ लेखकों ने इस पुस्तक में देवजी के विषय में लिखा है उससे उनका तुलसीदास और सूर के सदृश होना नहीं साबित होता। उससे तो देव का उनसे सर्वथा हीन होना ही साबित होता है। लेखकों ने पृष्ठ २१७ पर लिखा है---

"जो गुण सूरदास तथा तुलसीदास की कविता में हैं वे गुण देवजी भी नहीं ला सके हैं। यदि देव जी किसी भारी कथा-प्रसङ्ग का काव्य करते तो नहीं मालूम कि उनका वर्णन कैसा होता। सम्भव है कि ये भी वैसा काव्य कर सकते जैसा कि उन महात्माओं ने किया है परन्तु जब तक कोई वैसा साहित्य रच कर दिखा न दे तब तक यह कहा नहीं जा सकता कि वह अवश्य ऐसा कर सकता है, चाहै जितना बड़ा कवि वह क्यों न हो"।

बहुत अच्छा। आप को यह सम्मति सर्वथा मान्य है। देव ने कोई वैसा काव्य नहीं रचा। अतएव वे तुलसी और सूर की बराबरी के नहीं। इन ऊपर के वाक्यों के आगे पीछे, देव की कविता के विषय में, आपने जो बड़ी बड़ी और पूर्वापर विरोधिनी बातें लिखी हैं उन्हें हम निरर्थक समझकर आपकी इस युक्तिसङ्गत सम्मति को माने लेते हैं।

विहारीलाल

विहारी को इस पुस्तक के लेखक-'बहुत ही उत्तम कवि' समझते हैं और–--'तुलसीदास, सूरदास, और देव को छोड़ कर'