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पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/२३७

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हिन्दी-नवरत्न

कविरत्न या नवरत्न की पदवी मिल सकती है। स्त्री को सबसे अधिक चित्ताकर्षक समझना, साठ वर्ष की उम्र तक उसी की 'रसरीति' में निमग्न रहना और उसी के हावभाव आदि का नाना भाव-भड़्गियों से वर्णन करना भी यदि महाकवि के लक्षणान्तर्गत हो तो विहारी अवश्य ही महाकवि थे।

नवरत्न के २२२ वे पृष्ठ पर लेखकों ने लिखा है---

"महाराजा जयसिंह एक छोटी सी लड़की के प्रेम में उन्मत्त हो गये थे"---लड़की, सो भी छोटी सी! यह बात समझ में नहीं आती। क्या वह अज्ञातयौवना नायिका की उम्र की भी न थी.! लड़की किसकी ? क्या वह जयसिंह की रानी न थी? न थी तो इसका प्रमाण? किसी की लड़की के प्रेम में उन्मत्त होना महा- राजा जयसिंह की कीर्ति का वर्द्धक नहीं।

लेखक महोदयों का अनुमान है कि सतसई के एक एक दोहे पर विहारी का एक एक अशरफी पाना सच नहीं। क्योंकि-'विहारी को कलि के दानियों से सदा शिकायत रही। इससे जान पड़ता है कि इनका पूरा सन्मान कभी नहीं हुअा। यदि प्रति दोहा एक मोहर मिलती तो ये हज़ारों दोहे बना डालते'। परन्तु यह एक अनुमान मात्र है। कलि के दानियों से उनका मतलब यदि महाराजा जयसिंह को छोड़ कर और दानियों से रहा हो तो? और, विहारी ७०० अशर्फियों के दान को कुछ न समझते रहे हों तो? आप सात सौ को शायद बहुत समझते हैं; पर विहारी भी ऐसा ही समझते थे, इसका क्या प्रमाण? और, सारी सतसई बन चुकने पर जयसिंह ने दोहों की संख्या के अनुसार विहारी को अशर्फियाँ दी हों; अतएव उनकी शिकायत इसके पहले की हो तो? जैसे लेखकों का वह अनुमान है, वैसा ही यह भी है। परम्परा से सुनी गई जनश्रुति के खण्डन में सबल