सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/२३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३२
समालोचना-समुच्चय

प्रमाण आवश्यक होते हैं। हिन्दी के इतिहास में, आशा है, लेखक वैसे प्रमाण देने की चेष्टा करेंगे।

नवरत्न के कर्ता-महाशयों का कथन है--"इन्होंने संवत् १७१९ में सतसई समाप्त की और उसके पीछे कोई ग्रन्थ या छन्द नहीं बनाया"। आप लोगों की यह निश्चयवाचक उक्ति खटकने वाली है। इसका क्या प्रमाण कि यदि कोई ग्रन्थ नहीं बनाया तो एक आध छन्द भी नहीं बनाया? सतसई के बाद की उनकी कोई रचना नहीं देखी गई; इसी से आप ऐसा कहते हैं न! परन्तु किसी वस्तु की अप्राप्ति उसके अभाव या अनस्तित्व की सूचक कैसे मानी जा सकती है।

विहारी ने--'एक आध स्थानों पर औरों के भी कुछ भाव लिये हैं'--'यह लिख कर लेखक-महोदयों ने कुछ उदाहरण ऐसे दिये हैं जिनमें विहारी के भाव देव, रहीम, सीतल, केशव आदि के भावों से लड़ गये हैं। इस पर हमारा निवेदन है कि बिहारी की कविता में एक आध नहीं, अनेकों जगह, संस्कृत के प्राचीन कवियों के भाव पाये जाते हैं। उनमें से कितनों ही का निदर्शन सरस्वती में हो चुका है। सम्भव है, अभी आगे भी हो।

इस पुस्तक में पिष्टपेषण बहुत है। देव के विषय में लिखते समय, ऊपर, एक जगह, इसका सप्रमाण उदाहरण हम दे आये हैं। विहारी पर जो कुछ लेखकों ने लिखा है उसमें भी यह दोष है। पुस्तक के २२१ पृष्ठ पर है:---

"विहारी का जन्म-स्थान बसुधा गोबिन्दपुर नामक एक ग्राम जो ग्वालियर के निकट है कहा जाता है"। इसके अगले ही पृष्ठ पर यह बात फिर दुहराई गई है:-"इनका जन्म ग्वालियर के समीप बसुधा गोविन्दपुर में हुआ था।" इस पुनरुक्ति में इतनी