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पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/२४१

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हिन्दी-नवरत्न

आदि को अलग और हरिश्चन्द्र आदि आधुनिक हिन्दी के लेखकों को अलग। तब प्रत्येक क्लास में कवि, महाकवि और रत्न ढूँढ़िये। सूर और तुलसी आदि के काव्यों के समान सर्वोपकारी, उच्चविचारपूर्ण और चिरकाल तक पुराने न होनेवाले ग्रन्थों के प्रणेता कवियों ही की आप, समय का ख़याल न करके, कोई एक श्रेणी नियत कर सकते हैं, औरों की नहीं।

हरिश्चन्द्र के विषय में लेखक कहते हैं---"हम मुक्तकण्ठ ( ? ) कहेंगे कि ऐसा उत्तम अनुवादक भाषा-कवियों में कोई भी नहीं है"। आप लोगों की यह भी राय है कि हरिश्चन्द्र के---"नाटकों की गणना संस्कृत के उत्तम नाटकों के साथ होगी। शेक्सपियर के सब नाटक इन की बराबरी नहीं कर सकते"। इस पर हमारी प्रार्थना है कि आपकी राय, सम्भव है, बहुत ठीक हो। परन्तु आप इस तरह की बातें इस ढङ्ग से न कहा कीजिए। कृपा करके आप अपने इतिहास में हरिश्चन्द्र के अनुवादों के कुछ अंशों को मूलसहित उदघृत करके तब अपनी राय ज़ाहिर कीजिएगा। ऐसा करने से पढ़नेवालों पर आपकी राय का अधिक असर पड़ेगा। इसी तरह संस्कृत के और शेक्सपियर के नाटकों का मुक़ाबला हरिश्चन्द्र के नाटकों से करके तब अपनी सम्मति दीजिएगा। अन्यथा आपकी बात के न माने जाने का डर है। यदि कोई यह कहे कि सारे संसार की भाषाओं में आज तक जितने ग्रन्थकार हुए हैं उनमें हिन्दी का अमुक अन्धकार सबसे बढ़कर है तो उसकी बात तर्कशास्त्र की दृष्टि में उतनी ही अादरणीय होगी जितनी कि आपकी हरिश्चन्द्र-सम्बन्धिनी ये बातें हैं। मैजिस्ट्रेट जब किसी मुक़द्दमे का फैसिला लिखता है तब वह केवल अपनी आज्ञा ही सुनाकर चुप नहीं हो जाता। पहले वह दोनों पक्षों के प्रमाण-प्रमेयादि का उल्लेख करता है।