उपयोगी ग्रन्थ लिखनेवाले मतिराम और देव भी रत्न! रत्न शब्द की इससे अधिक अवहेलना और क्या हो सकती है? लेखकों के अनुसार 'प्रतिनिधि' कवि होकर भी बेचारे हरिश्चन्द्र नवरत्न की लघुत्रयी ही में नहीं पटके गये; किन्तु मतिराम महाराज के आसन से भी नीचे उतार दिये गये!!! मध्यत्रयी और लघुत्रयी में लेखकों ने कवियों को उनकी योग्यता के अनुसार ही आगे पीछे रक्खा है; और लघुत्रयी में हरिश्चन्द्र ने सब के अन्त में स्थान पाया है। अर्थात् वे नवरत्न के निकृष्ट रत्न हैं। इस स्थानदान में निर्दिष्ट कवियों को लेखकों ने दृढ़तापूर्वक उत्तमता में एक दूसरे के आगे पीछे पाया है। उत्तमता और योग्यता का ऐसा ज्ञान किस प्रकार की परीक्षा से लेखकों के हृदय में दृढ़ हुआ यह वही जानते होंगे।
चन्द को हुए कोई आठ सौ वर्ष हुए; मतिराम को हुए कोई ढाई सौ वर्ष; और हरिश्चन्द्र तो अभी कल हुए हैं। चन्द के समय का कवि-रत्न मतिराम के समय में कविरत्न नहीं माना जा सकता और मतिराम के समय का हरिश्चन्द्र के समय में नहीं। समय के अनुसार भाषाओं में परिवर्तन होता है और समय के अनुसार ही मनुष्यों की रुचि भी बदलती है। एक समय था जब रासौ के सदृश ग्रन्थ लिखनेवालों को बड़ी बड़ी जागीरें मिन्तती थीं। एक समय ऐसा भी आया जब नायिका-भेद के सदृश विषयों पर लिखे गये ग्रन्थों के लिए कवियों को ख़िलतें मिलने लगीं। अब वह समय भी नहीं रहा। अतएव भिन्न भिन्न समयों में होने वाले, और उपयोग तथा उच्च विचारों की दृष्टि से न्यूनाधिक महत्व के ग्रन्थ लिखने वाले, कविकुसुम एक ही माला में नहीं गूँथे जा सकते। ऐतिहासिक काव्य लिखनेवाले चन्द आदि पुराने कवियों को अलग रखिए; देव, मतिराम और विहारी