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भारतीय चित्रकला


नहीं चित्रकार ही मित्रों की नकल कर सकता है और प्रसिद्ध प्रसिद्ध चित्रकारो की कृतियों की नकल करने के लिए तो उन्होंके समूर्ण बहुत चितेरे चाहिए। ऐसे चितेरे सर्वत्र ही दुर्लभ होते हैं। यही कारण है जिनसे भारत को प्राचीन चित्रकला के उतने नमूने नहीं मिलते जितने कि मूर्तियों के मिलते हैं। तथापि चित्र-प्रेमियों के संग्रह में अब भी पुरानी क़लम के सहस्रशः चित्र ऐसे पाये जाते हैं जिनको भाव-व्यञ्जकता, शारीरिक शुद्ध-चित्रण और रङ्गों का वैशद्य आदि देखकर चित्रकलाकोविदों के मनोमयूर नृत्य करने लगते हैं। कवियों के लिए जैसे शब्दों, वृत्तों और स्वाभाविक वर्णनों की आवश्यकता होती है वैसे ही चित्रकारों के लिए चित्रित वस्तु के स्वाभाविक रङ्ग-रूप की तद्वत् प्रतिकृति निर्म्मित करने की आवश्यकता होती है। तथापि चित्रकार और कवि के लिए ये गुण गौण हैं। इन दोनों ही का मुख्य गुण तो है भावव्यञ्जकता। जिसमें भाव-व्यञ्जना जितनी ही अधिक होती है वह अपनी कला का उतना ही अधिक ज्ञाता समझा जाता है।

भारत की बहुत प्राचीन चित्रकला के नमूने जिन्हें देखना हो उन्हें एलोरा के गुफा-मन्दिरों की सैर करनी चाहिए। वहाँ दीवारों और छतों पर हजारों वर्ष के पुराने रङ्गीन चित्र अब भी प्रायःपूर्ववत् बने हुए हैं। दक्षिण के कुछ मन्दिरों में भी-जैसे एलोरा और सितानवासल के गुफा-मन्दिरों में―पुराने चित्र पाये जाते हैं। उन चित्रों को देखकर देशी और विदेशी, सभी चित्रकलाकोविद मुग्ध हो जाते हैं। एक साहब ने तो अजन्ता के अधिकांश चित्रों की नकल पुस्तकाकार प्रकाशित कर दी है। पुरातत्व-विभाग के कितने ही अधिकारियों ने अन्यान्य स्थानों के भी प्राचीन भारतीय शिल्प का उद्धार किया है। वे सब भिन्न भिन्न पुस्तकों और रिपोर्टों में विद्यमान हैं। भारतीय चित्रकला का अभ्यास अभी