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समालोचना-समुच्चय

संस्कृत-साहित्य के ग्रंथ देखने से विदित होता है कि पुराने ज़माने में लाट और सौराष्ट्र―आधुनिक गुजरात―सङ्गीत, चित्रकला और मूर्ति-विधान के लिए विशेष प्रसिद्ध थे। अकबर के दरबार में भी कई गुजराती चित्रकार और गवैये विद्यमान थे। लाट-देश की चित्रकता का उल्लेख कथासरित्सागर एवं मध्यकालीन प्राकृत-ग्रन्थों में भी मिलता है।

साधारण जनों के लिए मेहता महोदय की पुस्तक का अन्तिम भाग सबसे अधिक मनोरञ्जक होगा। उसमें आपने अपनी सहृदयता और चित्रकला की तत्वज्ञता का परिचय देकर, पुस्तक में प्रकाशित चित्रों की अच्छी आलोचना की है। जो सज्जन चित्रकला के पारदर्शी या प्रेमी हैं उन्हें चाहिए कि मेहता जी की यह पुस्तक ख़रीद कर इस बात को परीक्षा करें कि उनकी चित्रकलाभिज्ञता की प्रशंसा में अख़बारों ने जो कुछ लिखा है वह यथार्थ है या नहीं। यदि उसमें उन्हें कुछ त्रुटि भी मिलेगी तो भी, आशा है, सरसहृदय चित्रकलाकोविदों को उससे कुछ न कुछ, लाभ न सही, मनोरञ्जन तो अवश्य ही होगा।

मिस्टर मेहता की मातृभाषा गुजराती है। अँगरेज़ी में पुस्तक उन्होंने इसलिए लिखी होगी जिससे उसका अधिक प्रचार हो। अँगरेज़ीदाँ लोग ही इन बातों की क़दर भी अधिक करते हैं। तथापि बहुत से रईस ऐसे भी निकलेंगे जो चित्रों के क़दरदान तो हैं, पर अँगरेजी नहीं जानते। अतएव इस पुस्तक में प्रकाशित चित्रों की केवल ख़ूबियों आदि का संक्षिप्त वर्णन यदि हिन्दी में भी लिख दिया जाता तो अँगरेज़ी न जाननेवाले इसी प्रान्त के नहीं, कई अन्य प्रान्तों के भी चित्रप्रेमियों का उपकार होता।

[ फरवरी १९२७ ]
 

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