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पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/५७

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गायकवाड़ की प्राच्य-पुस्तक-माला


पुस्तक-भाण्डार है उसमें अनेक ग्रन्थ-रत्न सञ्चित हैं। उस तरफ और भी ऐसे कितने ही भाण्डार हैं―कुछ बड़ौदे की रियासत में हैं, कुछ अन्यत्र। उनमें सञ्चित पुस्तकें कृमियों का भक्ष्य हो रही हैं। अतएव उन्हें नाश से बचाने के लिए महाराजा बड़ौदा ने एक "Oriental Series" निकालने का प्रबन्ध किया है। यह पुस्तक-माला वैसी ही निकलेगी जैसी कि बम्बई,मदरास,माइसोर,ट्रावनकोर और काश्मीर आदि से निकलती है। इसमें पाटन तथा अन्य भाण्डारों के प्राचीन ग्रन्थ प्रकाशित होंगे। संस्कृत,प्राकृत,अपभ्रंश और गुजराती―इन सभी भाषाओं के प्राचीन ग्रन्थों का उद्धार इसमें होगा। पाटन के ग्रन्थ-भाण्डारों में बहुत पुराने और बड़े महत्व के ग्रन्थ हैं। वे भी इस प्राचीन पुस्तक-माला में प्रकाशित होंगे।

इस ग्रन्थ-माला का सम्पादन बड़ौदे के राजकीय पुस्तकालयों के अध्यक्ष, श्रीयुत कुडलकर, एम० ए०, की अधीनता और निरीक्षण में होगा। इसमें अब तक दो ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। अन्य कितने ही छप रहे हैं। कुछ का सम्पादन भी हो रहा है। जो ग्रन्थ निकले हैं उनमें से एक―

(१) राजशेखर विरचित काव्य-मीमांसा और दूसरा―

(२) वस्तुपाल-विरचित नरनारायणानन्द महाकाव्य है। इनका परिचय सुनिए―

काव्य-मीमांसा का सम्पादन दो पुस्तकें देख कर किया गया है―एक तो ईसा को तेरहवीं सदी में ताल-पत्र पर लिखी हुई कापी और दूसरी पन्द्रहवीं सदी में काग़ज़ पर लिखी हुई कापी। अब तक राजशेखर-कृत बालभारत, बालरामायण, विद्धशालभञ्जिका और कर्पूर-मञ्जरी ही का पता पण्डितों को था। अब महाराजा गायकवाड़ की कृपा से काव्य-मीमांसा भी सुलभ हो