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समालोचना-समुच्चय

महाराजा बड़ोदा के राज्य में कई प्राचीन पुस्तकालय हैं। उन्होंने भी अब इन पुस्तकालयों की पुस्तकों के उद्धार की आज्ञा दे दी है। बड़ोदे से जो प्राच्य-पुस्तक-माला (Gaikwad's Oriental Series) निकलने लगी है उसका उल्लेख हो ही चुका है। इस माला को तीन पुस्तकें हमें ओर मिली हैं―

(१) तर्क-संग्रह।

(२) राष्ट्रौढ़वंश-महाकाव्य।

(३) पार्थ-पराक्रम।

ये तीनों पुस्तकें अच्छे काग़ज़ पर, सुन्दर टाइप में, छपी हैं। टाइप बड़ा है। ऊपर काग़ज़ की पतली जिल्द है। सम्पादन सब का बड़ी योग्यता से हुआ है। आरम्भ में एक विस्तृत भूमिका, अँँगरेज़ी में, है। उसमें पुस्तक, पुस्तककर्ता तथा अन्य अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर विचार किया गया है। बड़ोदे के सेट्रल लाइब्रेरी के अध्यक्ष को लिखने से ये पुस्तकें मिल सकती हैं।

तर्क-संग्रह―यह न्यायशास्त्र का ग्रंथ है। इसके कर्ता का नाम आनन्द-ज्ञान या आनन्दगिरि था। वे संन्यासी थे। यह नाम संन्यास लेने के बाद का है। गृहस्थाश्रम का नाम था―जनार्दन। पुस्तक की भूमिका में सम्पादक, टी० एम० त्रिपाठी, बी० ए०, ने इनके विषय में अनेक बातें लिखी हैं। उनसे जान पड़ता है कि आनन्द-ज्ञान जी द्वारका के शारदा-मठ के आचार्य्य थे। उनके विद्या-गुरु सारस्वत-व्याकरण के कर्ता अनुभूति-स्वरूपाचार्य्य और दीक्षा-गुरु श्रद्धानन्द नाम के संन्यासी थे। आनन्दगिरि का समय ईसा की चौदहवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध है। इसमें सन्देह नहीं कि आनन्दगिरि महाविद्वान् थे। सम्पादक त्रिपाठी जी ने इनके रचे हुए १५ ग्रंथों के नाम दिये हैं, जो छप चुके हैं। सात ऐसे ग्रंथों के भी नाम आपने दिये हैं जो अब तक छपे नहीं।