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समालोचना-समुच्चय

दुरुपयोग हुआ है और हो रहा है, फिर भी इससे वे नितान्त त्याज्य नहीं हो गये”। पृष्ठ ८२

छुवाछूत से बीमारियाँ फैलने और बच्चों के मुख से रुग्ण माँ-बाप के मुख का स्पर्श होने से उपदंश आदि रोगों की उत्पत्ति होते देख गुप्त जी को ये विचार सूझे हैं। इसी से उन्होंने समाज-सुधारकों को सावधान किया है।

अमेरिका में नियागरा नाम का जो विश्वविदित जल-प्रपात है उसे देख कर पर्य्यटक महाशय के हृदय में बाइबिल की सभ्यता के सम्बन्ध में तीव्र रोष का आविर्भाव हो पाया। आप कहते हैं―

“नियागरा नाम ईरोकोइस भाषा से लिया गया है। यह भाषा इसी नाम की पुरानी जाति की थी जिसे पुराने समय में यूरोप-निवासी लुटेरों ने नष्टप्राय कर डाला। बाइबिल की सभ्यता अजीब सभ्यता है। इसको माननेवाली यूरोप की सफ़ेद जातियाँ यदि मौका पावें तो स्वयं महात्मा ईसामसीह को भी सूली पर चढ़ा उनके लत्ते-पत्ते नेाच खसोट लें। मेरा यह विश्वास होता जाता है कि योरोपवालों की ईसाइयत केवल भेड़ियों के लिए बकरी की खाल का ही काम देती है। ये लोग अपने को ईसाई पुकार कर पवित्र ईसामसीह के नाम को कलङ्कित करते हैं। इन पाखण्डी ईसाइयों की करतूतों को यदि जानना हो तो ‘कक्केंस्ट आव पेरू ऐंड मेक्सिको' (Conquest of Peru and Mexico) नाम की पुस्तकों को पढ़ना चाहिए"। पृष्ठ ८५

पाठक ज़रा ही और धैर्य्य धरें। बस दो ही तीन अवतरण और देकर इस लेख का समापन कर दिया जायगा। गुप्त जी सैर करते हुए अमेरिका के अलबनी नामक नगर में पहुँचे। वहाँ बड़ी मुश्किलों में होटलवाले ने उन्हें अपने होटल में उतरने दिया।