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सम्पत्ति-शास्त्र।

यदि बैंकों की अपेक्षा अधिक लाभ न होगा तो क्यों कोई रुपया लगावेगा? बैंकों के सूद की अपेक्षा किसी उद्योग-धन्धे में जो कुछ अधिक मिलता है उसमें सिर्फ़ सूदही नहीं, किन्तु उस धन्धे के जोखिम का बदला और निगरानी का ख़र्च भी शामिल रहता है। इसी सूद, जोखिम का बदले और निगरानी के ख़र्च के टोटल को मुनाफ़ा कहूते हैं। जिस रोज़गार में जोखिम अधिक रहता है और निगरानी का ख़र्च भी अधिक पड़ता है उसमें मुनाफा भी अधिक मिलना चाहिए। लोहे-लकड़ी का व्यापार करने वालों की अपेक्षा फल-फूलों का व्यापार करने वाले के अधिक मुनाफ़ा मिलना चाहिए। इसी तरह फल-फूलों का व्यापार करनेवालों की अपेक्षा बर्फ़ का व्यापार करने वाले को अधिक मुनाफ़ा मिलना चाहिए। क्योंकि लोहे-लकड़ी की अपेक्षा फल-फुलों के बिगड़ने का अधिक डर रहता है और फल-फूलों की अपेक्षा बर्फ के गलने का और भी अधिक। जो चीज़ जल्द बिगड़ जाती है उसे अच्छी हालत में रखने के लिए देख भाल अधिक करनी पड़ती है और उसे जल्द बेचने की कोशिश भी करनी पड़ती है। इसीसे जल्द गलने या सड़ने वाली चीज़ों पर मुनाफ़ा अधिक देना पड़ता हैं।

इस विवेचन से यह मालूम हुआ कि मुनाफ़ा एक विशेष व्यापक शब्द हैं और उसमें सूर्द के सिवा निगरानी का ख़र्च और जोखिम का बदला भी शामिल रहता है।

सूद की शरह तो एक हो सकती है, पर मुनाफ़े की एक नहीं हो सकती। व्यापार-व्यवसाय में जोखिम और ख़र्च की कमी-वेशी के अनुसार मुनाफ़े की मात्रा भी कमोबेश होती है। यह एक ऐसी मोटी बात है जिसकी विशेष विवेचना की ज़रूरत नहीं।

आज कल निंर्बन्धरहित वाणिज्य का ज़माना है। प्रायः सभी व्यवसायों में चढ़ा-ऊपरी चलती है। इससे मुनाफ़े की मात्रा बहुत कम हो गई है। जहाँ किसी ने सुना कि कोई आदमी किसी व्यवसाय में अधिक मुनाफ़ा उठा रहा है तहाँ और लोग भी वही व्यवसाय करने लगते हैं। चढ़ा ऊपरी का झोंक में वे अधिक पूँजी लगा कर वह चीज़ तैयार करते हैं और थैाडी क़ीमत पर बेचते हैं। यह देख कर पहले व्यवसायी के भी क़ीमत का निर्ख़ घटाना पड़ता है। फल यह होता है कि सबके मुनाफ़े की मात्रा कम हो जाती है। थोड़ी पूँजीवाले लोग थोड़े मुनाफ़े पर बहुत दिन तक चढ़ा-