अपनी प्रतिष्ठा समझी है । उसे अनेक अनी का मूल बतलाने ही में उन्होंने
संसार का भला सोचा है। फिर भला पेसी अनर्थकरी सम्पत्ति की उत्पत्ति,
वृद्धि और रक्षा के नियम वे क्यों बनाते ? क्यों ऐसे अनुचित काम में अपने
बहुमूल्य समय का दुरुपयोग करते ? क्यों सम्पत्ति-शास्त्र की रचना पार प्रचार
से अनेक आपदाओं को उत्पत्ति का बीज चाते ? जो सम्पदा, जो लक्ष्मी, ईश्वर-
प्राप्ति में बाधा डालती है उस पर प्रन्थ लिखने बैठना क्यों के पसन्द करते?
इसी से सम्पत्ति-शास्त्र की रचना के बखेड़े में ये नहीं पड़े । अनुमान से यही
मालूम होता है।
शासन, राजकीय व्यवस्था और व्यापार से सम्पत्तिसाख का गहरा सम्बन्ध
है। यह वह शास्त्र है जो राज्य-शासन, सार्वजनिक उद्योग-धन्धा और व्यापार
के तत्वों से लबालब भरा हुआ है। इस शास्त्र के नियमों का विचार करने में
व्यवहार सम्बन्धी माय: सभी बातों का विचार करना पड़ता है। शासन
पार व्यापारको धुनियाद व्यवहारही है। प्रतएव व्यवहार की बातों को महत्व
दिर विना-उनके सिद्धान्त दृढ निकालने की फ़िक किये बिना-सम्पत्ति-
शास्त्र की उत्पत्ति नहीं हो सकती । इसीसे मुसामानों की प्रभुता के ज़माने में
भो, इस देश में, सम्पत्ति-शास्त्र की तरफ लोगों का ध्यान नहीं गया।
मुसलमान बादशाह ने धार्मिक बातों ही को-प्रधानता दी। जो समय
लड़ने मिड़न से बच्चा उसे उन्होंने सुम्ल भागने में व्यर्च कर दिया । कभी
उन्नानि इस बात का विचार नहीं किया कि हमारे देश की सम्पत्ति का
क्या हाल है ? या बट रही है या बढ़ रही है ? यदि बट रही है तो उसे
किस तरह बढ़ाना चाहिए ?
देश की सम्पत्ति कई कारणों से घटती है। उनमें तीन कारण प्रधान
- प्राकृतिक. गजकीय और व्यापार-विषयक! (१) जमीन की उर्वरा-
शक्ति के कम हो जाने से और खानों से सोना, चांदी, लोहा आदि खनिज
पदाधों का निकलना कम या बिलकुल ही बन्द हो जाने से देश की सम्पत्ति
घट जाती है। यह प्राकृतिक कारणों का एक उदारण है । अंगरेजी राज्य के
पहले ऐसे कारगों की उत्पति बहुत करके हिन्दुस्तान में नहीं हुई। (२)
जोते हुए देश को सम्पत्ति यदि कोई विजयी राजा धीरे धीरे अपने देश
ले जाय और फम क्रम से विजित देश को निःसार करता रहे तो दूसरे,
अर्थात् राजकीय. कारण की उत्पति होती है। मुसल्मानी राज्य में यह बात
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सम्पत्ति-शास्त्र।